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चुनावों मे इस पार्टी को मिली बड़ी सफलता, बेरोजगार कार्यकर्ता बना सबसे युवा विधायक

नई दिल्ली, चुनावों मे जहां ज्यादातर को हार का सामना करना पड़ा वहीं कुछ साधारण लोगों ने इतिहास रचने का भी काम किया है।  इस विधान सभा चुनावों मे एक पार्टी को जहां  बड़ी सफलता मिली है। वहीं पार्टी का बेरोजगार कार्यकर्ता, प्रदेश का सबसे युवा विधायक बन गया है।

छब्बीस साल के राजकुमार रोत के लिए बीते कुछ दिन उसके जीवन की दशा और दिशा बदल गए। कहां तो वह डूंगरपुर के जंगली इलाकों में आदिवासियों में अधिकारों की अलख जगाने घूमा करते थे और कहां अब राज्य के सबसे युवा विधायक के रूप में शपथ लेने की तैयारी कर रहे हैं। अब उन्हें पुलिस सब इंस्पेक्टर भर्ती परीक्षा के परिणाम का इंतजार नहीं है बल्कि वह लोकतंत्र का मंदिर कहलाने वाली विधानसभा में आदिवासियों की आवाज बनना चाहते हैं।

राजकुमार रोत ने डूंगरपुर जिले की चौरासी विधानसभा सीट पर तत्कालीन राज्यमंत्री सुशील कटारा को 12,934 मतों से हराया है। वे कहते हैं कि राजनीतिक दलों ने आदिवासियों के वास्तविक मुद्दों की कभी गंभीरता से परवाह नहीं की। उनकी समस्याएं तथा मूलभूत जरूरतें जस की तस हैं। इसीलिए उन्होंने राजनीति में उतरने का फैसला किया और अपने तमाम तीर और तलवार के साथ चुनावी रण में कूद पड़े।

रोत का गांव खांखर खुणिया, जिला मुख्यालय डूंगरपुर से 25 किलोमीटर की दूरी पर है। इसमें 20 किलोमीटर तक तो सड़क है और साधन भी, लेकिन उसके बाद जंगलों में बनी पगडंडी ही सहारा है। वह 2014-15 में डूंगरपुर कालेज के अध्यक्ष रहे। बीए बीएड हैं। इसी साल राजस्थान प्रशासनिक सेवा (आरएसएस) में बैठे और पुलिस सब इंस्पेक्टर भर्ती परीक्षा के परिणाम का इंतजार करते हुए अपने साथियों के साथ दूरदराज के आदिवासी बहुल इलाकों में जल, जंगल जमीन के मुददे पर अलग जगा रहे थे।

लगभग तीन महीने पहले राज्य में जब चुनावी सुगबुगाहट शुरू हुई तो भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) ने इस इलाके में प्रत्याशी उतारने का फैसला किया। पार्टी ने कुल मिलाकर 11 उम्मीदवार तय किए जिनमें से दो जीते। रोत के अलावा सागवाड़ा सीट पर बीटीपी के रामप्रसाद ने भाजपा के ही शंकरलाल को 4582 मतों से हराया। इस तरह बीटीपी ने राज्य के राजनीतिक पटल पर दस्तक दी है।
दो बहनों के इकलौते भाई रोत के पिता का निधन बहुत पहले हो गया था। उनकी बड़ी बहन सरकारी सेवा में हैं और वही उनकी प्रेरणा स्रोत रही हैं।

रोत भील विद्यार्थी मोर्चा से जुड़े रहे हैं और अपनी बाइक से आसपास के सारे आदिवासी बहुल इलाकों की खाक छान चुके हैं। सीधा सरल व्यक्तित्व और अपनाइयत से भरी आवाज में आम लोगों से सीधे संवाद करने वाले रोत ने धीरे धीरे मतदाताओं में अपनी पैठ बना ली और उसी का नतीजा था कि एक कद्दावर राज्यमंत्री के सामने ‘राजनीति के इस रूंगरूट’ को 64119 मत मिले और वह 12,934 वोटों से जीत गए।
रोत ने बताया, ‘‘आदिवासियों के लिए सबसे बड़ा मुद्दा संविधान की पांचवी अनुसूची का सही कार्यान्यन नहीं होना है।’’ रोत के अनुसार, इसी कारण आदिवासी आज तक पिछड़े हैं और अपने ही जल, जंगल व जमीन से बेदखल होकर समाज के हाशिए पर पड़े हैं।  उल्लेखनीय है कि यह अनुसूची देश में अनुसूचित जनजाति की सुरक्षा और हित से जुड़ी हैं। रोत के अनुसार अब, विधायक बनने के बाद उनके लिए अपनी सरकारी नौकरी और करियर से ज्यादा महत्वपूर्ण यह हो गया है कि वह विधानसभा में लाखों लाख आदिवासियों की आवाज बनें और ऐसी आवाज बनें जिसकी अनदेखी नहीं की जा सके।