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ख्वाजा मोईनुद्दीन विश्वविद्यालय के VC पर उठे सवाल, वहीं शोध छात्रों ने 45 फीसदी बढ़ी फीस पर खोला मोर्चा

लखनऊ, ख्वाजा मोईनुद्दीन उर्दू अरबी फ़ारसी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो माहरुख मिर्ज़ा अपनी कारगुजारियों के चलते एक बार फिर विवादों के घेरे में हैं. एक ओर विवि के कुलपति पर अयोग्यता के आरोप में उनकी मौलिक नियुक्ति से बर्खास्त होते हुए पेंशन गंवाने का संकट खड़ा है. दूसरी ओर विश्वविद्यालय प्रशासन ने पीएचडी छात्रों की 45 फीसदी फीस बढ़ा कर नया विवाद खड़ा कर दिया है जो थमने का नाम नहीं ले रहा है. विवि ने 6 दिन में शोध छात्रों को 45 फीस जमा करने का अल्टीमेटम दे डाला है.

शोध छात्रों ने विवि के इस फरमान के खिलाफ राज्यपाल/कुलाधिपति आनंदीबेन पटेल का दरवाजा खटखटा कर गुहार लगाई है. कुलाधिपति ने भी इस पर संज्ञान लेकर जल्द ही फैसला सुनाने का आश्वासन दिया है. जानकारों का कहना है कि दोनों ही मामलों में विवि प्रशासन पर गाज गिरनी तय है.

कुलपति माहरूख मिर्जा पर मौजूदा समय में ‘पकाई खीर पर हो गया दलिया’ वाली कहावत चरितार्थ हो रही है. दरअसल ख्वाजा मोईनुद्दीन विवि के कुलपति हैं लेकिन उनकी मौलिक नियुक्ति शिया कॉलेज द्वारा बर्खास्त कर दी गई. इसके साथ ही ख्वाजा मोईनुद्दीन विवि में 2013 में हुई प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति को जस्टिस त्रिपाठी की जांच में अवैध व नियमविरुद्ध घोषित करते हुए शासन व राजभवन को जाँच सौपी जा चुकी है.
पूर्व में भी मिर्ज़ा को अनुशासनहीनता व कॉलेज विरोधी कार्यो के लिए निलंबित किया जा चुका है. ऐसे में अब प्रस्ताव पर लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा मुहर लग जाने से कुलपति माहरुख मिर्ज़ा को पेंशन की टेंशन भी सताने लगी है.

क्या है पूरा मामला

उत्तरप्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल राम नाईक ने प्रोफेसर माहरूख़ मिर्ज़ा को अक्टूबर 2017 में ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती उर्दू, अरबी-फ़ारसी विश्वविद्यालय लखनऊ का कुलपति नियुक्त किया था. कुलपति से पहले प्रोफ़ेसर मिर्ज़ा लखनऊ  विश्विद्यालय से संबद्ध शिया पीजी कालेज में बतौर एसोसिएट प्रोफेसर तैनात थे. लेकिन उन पर कॉलेज विरोधी कार्यो, धरना देने व अनुशासनहीनता के तहत कार्यवाही की गई.

2013 में प्रोफेसर मिर्ज़ा का चयन बतौर प्रोफेसर के पद पर ख़्वाजा मोइनुद्दीन उर्दू अरबी फारसी विश्विद्यालय में हो गया था. लेकिन प्रोफेसर मिर्ज़ा द्वारा शिया कॉलेज से न तो NOC लिया गया, न ही अपने पद से इस्तीफा दिया गया और तो और इनके द्वारा कॉलेज प्रशासन से अवकाश लिया गया. इन सब मसलों का संज्ञान लेते हुए प्रोफेसर मिर्ज़ा को 4 महीनों के समय के साथ 3 नोटिस दी गई. जिसका जवाब प्रोफेसर मिर्ज़ा द्वारा नही दिया गया.

डिप्टी सीएम बोले- दोषी पाए जाने पर सख्त कार्रवाई

पांच वर्ष बीत जाने के बाद शिया कॉलेज ने प्रोफेसर मिर्ज़ा के खिलाफ निलंबन प्रस्ताव कॉलेज मैनेजमेंट से पारित कराकर लखनऊ विश्वविद्यालय के अनुमोदन के लिए भेज दिया. जिसपर लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा लीगल ओपिनियन ली गयी, जो मई 2019 में लखनऊ विश्वविद्यालय को प्राप्त हो गई थी. जिसमें कुलपति प्रोफेसर मिर्ज़ा के शिया कॉलेज द्वारा किए गए निलंबन को सही बताते हुए पूर्व कुलपति शैलेश शुक्ला द्वारा मुहर लगा दी गई. इस पर सूबे के उपमुख्यमंत्री व शिक्षा मंत्री प्रो दिनेश शर्मा ने स्पष्ट किया है कि मामला संज्ञान में है. दोषी पाए जाने पर महरूख मिर्ज़ा के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जाएगी.

शासन के फैसले के खिलाफ शोधार्थियों ने कुलाधिपति को भेजा ज्ञापन

ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय में बढ़ी हुई फीस से असंतुष्ट शोध छात्रों ने विवि प्रशासन के फैसले के खिलाफ कुलाधिपति आनंदीबेन पटेल को ज्ञापन प्रेषित किया है. शोधछात्रों ने कुलाधिपति से मांग की है कि विवि प्रशासन के 6 दिन में फीस जमा करने के फैसले और 45 फीसदी फीस बढ़ाए जाने का संग्यान लेकर विद्यार्थियों को राहत दें.

ये है पूरा मामला

दरअसल ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय ने 23 जुलाई को शोधार्थियों को 30 जुलाई तक फीस जमा करने का आदेश जारी किया था. यही नहीं आदेश में फीस की राशि बढ़ा 19,910 रूपये कर दी है, जबकि बीते साल पीएचडी के पहले बैच के प्रवेश के समय विद्यार्थियों से एडमिशन फीस के तौर पर 14,160 रूपये लिए गए थे. जब शोधार्थियों ने बढ़ी हुई फीस के संबंध में पूछा तो विवि प्रशासन ने बढ़ी हुई 6000 फीस कोर्स वर्क से संबंधित बता दी, बची हुई फीस किस मद में ली जा रही है? इसकी सूचना नहीं दी.

कोविड 19 महामारी के दौर में भी विवि प्रशासन की ओर से 6 दिन में फीस जमा करने के आदेश जारी किया है, जबकि सरकार ने कॉलेज और विश्वविद्यालय को फीस बढ़ाने और छात्रों पर फीस जमा करने पर दबाव न डालने की सलाह दी है. इसके उलट विवि प्रशासन फरमान जारी करते हुए छात्रों के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहा हैं.