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भाई-भतीजे के सहारे नहीं लड़ी जा सकती बहुजनों की लड़ाई

कमल जयंत (वरिष्ठ पत्रकार)। यूपी में विधानसभा के हुए चुनाव में बसपा को मिली करारी शिकस्त के बाद पार्टी प्रमुख मायावती जी ने हार के कारणों की कोई खास समीक्षा तो नहीं की, लेकिन यह बताने का प्रयास जरूर किया कि वह पार्टी के संस्थापक बहुजन नायक कांशीराम जी के आदर्शों पर चल रहीं हैं, उन्होंने भाजपा द्वारा खुद को राष्ट्रपति बनाये जाने की अफवाह का जिक्र करते हुए कहा कि भाजपा द्वारा राष्ट्रपति बनाने के प्रस्ताव को बहुत पहले ही मान्यवर कांशीराम जी ने ठुकरा दिया था, फिर मैं तो उनके पदचिन्हों पर चलने वाली उनकी मजबूत शिष्या हूं। अच्छी बात ये है कि वे खुद को

कांशीराम जी की शिष्या मान रहीं हैं, लेकिन कांशीराम जी ने बसपा का गठन करने के साथ ही ये प्रतिज्ञा भी ली थी कि वे राजनीति में अपने परिवार को नहीं लायेंगे, उन्होंने ये प्रतिज्ञा मायावती जी को भी दिलाई, कांशीराम जी के जीवित रहने तक तो मायावती जी ने राजनीति में अपने परिवार को शामिल नहीं किया, लेकिन अब उन्होंने अपने भाई आनन्द को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और भतीजे आकाश आनंद को राष्ट्रीय समन्वयक की पार्टी में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देकर यह साफ़ कर दिया है कि उनका कांशीराम जी के मिशन और बहुजन मूवमेंट से अब कोई लेना-देना नहीं है। कांशीराम जी ने 6743 जातियों में बंटे बहुजन समाज जिनमें दलित, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक समाज शामिल है इनको एकजुट करने के लिए बहुजन समाज पार्टी का गठन किया और उन्होंने दबे-कुचले वंचित और शोषित समाज को एकजुट करके देश के सबसे बड़े राज्य में बसपा की सरकार बनाकर ये सन्देश दिया कि शोषित समाज को एकजुट करके भी सत्ता हासिल की जा सकती है।

यूपी वैसे मायावती जी ने हार के कारणों की समीक्षा के दौरान यह भी कहा कि मेरी खुद की जाति का दलित वोट न तो भटका है और न ही गुमराह हुआ है। मेरे लोगों पर मुझे बहुत ज्यादा गर्व है और मैं उनकी तहे दिल से आभारी हूं। जबकि कांशीराम जी ने जातियों में बंटे दलित और पिछड़ा वर्ग को एक सूत्र में बाँधने के लिए ही बहुजन समाज बनाया, अब बसपा का मौजूदा नेतृत्व पार्टी के गठन के पीछे बहुजन नायक की जो मूल भावना थी, उसको दरकिनार करके इस पार्टी को केवल एक जाति की पार्टी बनाने का जो प्रयास कर रहा है, ये ना केवल चमार-जाटव बिरादरी के लिए बल्कि पूरे बहुजन समाज के लिए अति दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है। उनका ये कहना कि मुझे भाजपा द्वारा राष्ट्रपति बनाने की बनाने की अफवाह फैलाई गयी और कहा गया कि भाजपा की सरकार बनाने में बसपा मदद करेगी, जिसकी वजह से मुस्लिमों ने बसपा से किनारा कर लिया। दरअसल बसपा कहीं भी मुस्लिमों के अधिकारों के लिए लडती नहीं दिखी, चुनावों को छोड़ दिया जाय तो बसपा ने मुस्लिमों की किसी भी समस्या से सीधा सरोकार नहीं रखा, सीएए और एनआरसी के खिलाफ हुए आन्दोलन में भी बसपा कहीं खड़ी नहीं दिखी, मुस्लिमों के साथ ही दलितों या पिछड़ा वर्ग की किसी भी परेशानी में बसपा नहीं खड़ी दिखी, यही वजह रही कि एक-एक करके 85 फीसदी बहुजन समाज बसपा से अलग हो गया।

सामाजिक संस्था बहुजन भारत के अध्यक्ष एवं पूर्व आईएएस कुंवर फ़तेह बहादुर के मुताबिक जिस जाति के अपने साथ जुड़ा रहने पर मायावती जी गर्व महसूस कर रहीं हैं, दरअसल इस समाज के लोगों ने सबको जोड़कर वंचितों और शोषितों को उनके अधिकार दिलाने के लिए हमेशा आगे बढ़कर संघर्ष किया है, ऐसे में मायावती जी का ये कहना अत्यंत चिंता का विषय है उनकी जाति के लोग पूरी तरह से आज भी उनके साथ हैं, जबकि वास्तविकता यह है कि उनके गलत निर्णयों और अपने परिवार के प्रति मोह के कारण बहुजन समाज की सारी जातियां एक-एक करके उनसे अलग हो गयीं हैं और मुस्लिम समाज तो बिलकुल ही अलग हो गया है। अब सवाल ये उठता है कि क्या केवल एक जाति के वोट के सहारे कोई भी दल भाजपा को सत्ता में आने से रोका जा सकता है, भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए मायावती जी को एकबार फिर बहुजन नायक के बताये रस्ते पर चलकर सर्वजन के बजाय बहुजन समाज की बात करने के साथ ही उनकी समस्याओं को दूर करने व उन्हें उनके अधिकार दिलाने के लिए सड़क पर संघर्ष करना होगा और बहुजन समाज की सभी जातियों के बीच जाकर उनमें आपसी भाईचारा स्थापित करना होगा और इसके लिए उनके बीच जाकर अभियान चलाना होगा, वर्ष 1993 में कांशीराम जी ने मुलायम सिंह से गठबंधन करके भाजपा के रथ को ना केवल यूपी में ही रोक दिया था, बल्कि राज्य में सपा-बसपा गठबंधन की सरकार भी बनायी थी, लेकिन मौजूदा समय में बहुजन समाज के बीच जागरूकता पैदा किये बगैर सत्ता पाने की बात करना बेमानी होगा।