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बढ़ते दमन, अत्याचार और धार्मिक ध्रुवीकरण को रोकने के लिए उतरी, ये दिग्गज हस्तियां

नयी दिल्ली ,  देश के जाने माने बुद्धिजीवियों,  पत्रकारों एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं ने मोदी सरकार में बढ़ते दमन, अत्याचार और धार्मिक आधार पर सामाजिक ध्रुवीकरण को रोकने के लिए नागरिक समाज को आगे आने का आह्वान किया है और 2019 के चुनाव में सांप्रदायिक फासिस्ट ताकतों को पराजित करने के संकल्प व्यक्त किया है।

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समावेशी भारत के निर्माण के लिए राजधानी में आयोजित तीन दिवसीय सिटीजन्स कॉन्क्लेव में यह आह्वान किया गया। प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्त्ता शबनम हाशमी प्रसिद्ध अधिवक्ता एवं पर्यवारणविद् उषा रंगनाथन, अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति की पूर्व महासचिव जगमाती सांगवान, डॉण् हर्षवर्धन हेगड़े, चर्चित छात्र नेता कन्हैया कुमार, जाने माने टीवी पत्रकार राजदीप सरदेसाई, ओम थानवी, सिद्धार्थ वर्ध राजन एवं सबा दीवान अादि ने यह आह्वान किया।

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वक्ताओं ने लोकतंत्र को बचाने के लिए के लिए दलित, पिछड़े, अल्पसंख्यक एवं महिलाओं को विशेष रूप से एकजुट करने पर भी बल दिया क्योंकि मोदी सरकार में सबसे अधिक पीड़ित यही वर्ग है और सत्ता के निशाने पर भी यही हैं। टीवी एंकर राजदीप सरदेसाई का कहना था कि अब वक़्त आ गया है कि देश में आज जो कुछ हो रहा उसका विरोध करने के लिए नागरिक समाज आगे आये और विपक्ष एक जुट हो। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने समाज को बाँटने के साथ साथ मीडिया को भी बाँट दिया।

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जवाहरलाल नेहरु छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार का कहना था कि आज जनता की भाषा में जनता से जुड़ने की जरुरत है। तूतीकोरिन की घटना को देखते हुए कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में भाग ले रहे विपक्षी नेताओं को बेंगलुरु से वहाँ घटना स्थल तक भी जाना चाहिए था। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तो अपने समर्थकों और जनता को अपनी बात तो कह देते हैं लेकिन उनके विपक्षी अपनी बात जनता की भाषा में जनता तक संबोधित नहीं कर पाते हैं। उन्होंने कहा कि समाज में अभी भी गंगा जमुनी संस्कृति मौजूद है। लोकतंत्र का अर्थ बहुसंख्यकवाद नहीं है इसलिए लोकतंत्र में भी असहमति को स्थान दिया जाना चाहिए।

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जनसत्ता के पूर्व संपादक ओम थानवी ने कहा कि हमलोग कांग्रेस की भी आलोचना करते रहे है चाहे आपातकाल हो या राजीव गाँधी का प्रेस बिल लेकिन मोदी सरकार के कार्यकाल में असहिष्णुता अधिक बढ़ गयी और अनेक लेखकों ने पुरस्कार तक लौटा दिए लेकिन असहिष्णुता का आलम यह है कि उन्हें अवार्ड वापसी गैंग तक कहा गया। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार में चार-चार लेखकों की हत्या कर दी गयी। द वायर के संपादक सिद्धार्थ वर्ध राजन ने कहा कि देश का पूरा सिस्टम ही ख़राब हो गया है और इसके लिए केवल हम केवल एक व्यक्ति का विरोध नहीं कर रहे पर गुजरात फाइल्स की लेखिका राना अयूब की सुरक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्रसंघ को भी भारत से कहना पड़ रहा है। आज तक देश में ऐसा नहीं हुआ था।

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हरियाणा में खाप पंचायतों के खिलाफ आवाज़ बुलंद करनेवाली श्रीमती सांगवान ने कहा कि आज़ादी के बाद अल्पसंख्यकों, दलितों और स्त्रियों को उनके हक नहीं दिए गए जिस से वे समाज के हाशिये पर चले गए और अब मोदी सरकार तो पूरे समाज को तोड़ने में लगी है इसलिए समावेशी भारत को बनाने की बेहद जरुरत है। नागरिक सम्मलेन में समावेशी भारत के लिए शिक्षा पर दिल्ली विश्वविद्यालय की अाभादेव हबीब ने मोदी सरकार में स्वायत्तता के नाम पर उच्च शिक्षा के निजीकरण और संप्रदायीकरण की चर्चा की। सम्मेलन में अरविन्द मायाराम, जिग्नेश मेवानी, अशोक वाजपेयी, सीमा मुस्तफा, सईदा हमीद, कविता श्रीवास्तव, गणेश देवी समेत अनेक लोग भाग ले रहे है।

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