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जानिये, प्रेस कांफ्रेंस करने वाले चार जजों के बारे मे…

नयी दिल्ली, एक अप्रत्याशित कदम उठाते हुए एक संवाददाता सम्मेलन कर उच्चतम न्यायालय में ‘‘सबकुछ ठीक न होने’’ और वहां ‘अपेक्षा से कहीं कम चीजें’’ होने की बात कहने वाले उच्चतम न्यायालय के चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों के प्रोफाइल इस प्रकार हैं।

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 न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर : वह प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के बाद उच्चतम न्यायालय के दूसरे सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश हैं। न्यायमूर्ति चेलमेश्वर कई बार विवादों में रहे हैं। वह उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति को लेकर हुई कॉलेजियम की बैठकों में हिस्सा न लेने के लिए खबर में थे।

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वह पिछले साल नवंबर में भी खबरों में थे जब उनके नेतृत्व वाली दो न्यायाधीशों की एक पीठ ने एक मेडिकल कॉलेज मामले में सकारात्मक आदेश हासिल करने के लिए न्यायाधीशों के नाम पर रिश्वत लिए जाने के गंभीर आरोप लगाने वाले एक एनजीओ और एक वकील की याचिकाओं पर सुनवाई के लिए न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीशों की एक पांच सदस्यीय पीठ का गठन करने का आदेश दिया।

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शीर्ष न्यायापालिका में संघर्ष सामने लाने वाले आदेश को प्रधान न्यायाधीश के नेतृत्व वाली एक पांच सदस्यीय पीठ ने पलटते हुए कहा कि प्रधान न्यायाधीश ‘‘कुनबे के प्रमुख ’’ हैं।वह नौ न्यायाधीशों की उस संवैधानिक पीठ में थे जिसने निजता के अधिकार को एक मौलिक अधिकार घोषित किया था। इस साल 22 जून को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के तौर पर सेवानिवृत्त होने जा रहे न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने आधार एवं जेएनयू मामले सहित कई महत्वपूर्ण मामलों में सुनवाई की है।

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 न्यायाधीश रंजन गोगई : न्यायमूर्ति मिश्रा के इस साल दो अक्तूबर को प्रधान न्यायाधीश के तौर पर सेवानिवृत्त होने के बाद वह अगले प्रधान न्यायाधीश बनने की कतार में हैं। प्रधान न्यायाधीश के तौर पर उनका कार्यकाल 17 नवंबर, 2019 तक का होगा।उनके नेतृत्व वाली एक पीठ ने पिछले महीने निर्देश दिया था कि सांसदों एवं विधायकों से जुड़े मामलों से खासतौर पर निपटने के लिए गठित की जाने वाले 12 विशेष अदालतें एक मार्च, 2018 से काम करना शुरू कर दें।

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न्यायमूर्ति गोगोई के नेतृत्व वाली पीठ ने फेसबुक पर आपत्तिजनक पोस्ट डालने के लिए न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) मार्कण्डेय काट्जू को अदालत की अवमानना का नोटिस दिया था और बाद में काट्जू न्यायालय में पेश हुए और बिना किसी शर्त के माफी मांगी जिसे पीठ ने स्वीकार कर लिया।

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 न्यायमूर्ति मदन भीमराव लोकुर : वह उग्रवाद प्रभावित मणिपुर में फर्जी मुठभेड़, शहरी बेघरों को आश्रय मुहैया कराने, बाल विवाह, कारागार सुधारों, इंटरनेट पर यौन दुराचार के वीडियो डालने और अभावग्रस्त विधवाओं से जुड़े मामले सहित कई महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दों पर ध्यान देते रहे हैं।

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उनके नेतृत्व वाली एक पीठ ने पिछले साल अक्तूबर में एक ऐतहासिक फैसला सुनाते हुए नाबालिग पत्नी के साथ यौन संबंध बनाने को अपराध के दायरे में डालते हुए कहा था कि 18 साल से कम उम्र की लड़की के साथ यौन संबंध बनाना, चाहे वह उसका पति ही क्यों ना करे, बलात्कार की श्रेणी में आएगा।न्यायमूर्ति लोकुर के नेतृत्व वाली एक पीठ वायु प्रदूषण और ताजमहल के संरक्षण जैसे मुद्दों पर सुनवाई कर रही है। वह इस साल 30 दिसंबर को सेवानिवृत्त हो जाएंगे।

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 न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ : वह पांच न्यायाधीशों की उस संवैधानिक पीठ में शामिल थे जिसने 3:2 के बहुमत से मुसलमानों में तीन तलाक के 1,400 साल पुराने चलन को रद्द कर दिया।न्यायमूर्ति जोसेफ ने दो और न्यायाधीशों के साथ मिलकर तीन तलाक मामले में बहुमत का फैसला सुनाया जिसमें तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश जे एस खेहर अल्पमत में थे।

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उन्होंने अप्रैल, 2015 में तब विवाद को जन्म दिया जब उन्होंने तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश एच एल दत्तू को पत्र लिखकर मुख्य न्यायाधीशों का एक सम्मेलन गुड फ्राइडे को आयोजित करने का विरोध किया। गुड फ्राइडे को ईसाई शुभ दिन मानते हैं।न्यायमूर्ति जोसेफ इस साल 29 नवंबर को सेवानिवृत्त हो जाएंगे।

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