नई दिल्ली, यमन में सऊदी बमों से मरने वाले नागरिकों की बढ़ती संख्या, इस्तांबुल के सऊदी दूतावास में पत्रकार जमाल खशोगी की खौफनाक हत्या और रियाद के ईरान को लेकर आक्रामक रवैये की वजह से सऊदी के सुन्नी सहयोगी भी प्रिंस को समर्थन देने के अपने फैसले पर दोबारा विचार करने को मजबूर हो गए हैं.
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फॉरेन पॉलिसी की रिपोर्ट के मुताबिक, अप्रैल महीने में लीबिया के सबसे विख्यात सुन्नी मौलवी ग्रैंड मुफ्ती सादिक अल-घरीआनी ने सभी मुस्लिमों से इस्लाम में अनिवार्य माने जाने वाली हज तीर्थयात्रा का बहिष्कार करने की अपील की. उन्होंने यह भी दावा किया कि अगर कोई भी शख्स दूसरी बार हज तीर्थयात्रा करता है तो यह नेकी का काम नहीं बल्कि पाप होगा.
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सऊदी अरब का प्रभाव केवल राजनीतिक और सैन्य तौर पर ही नहीं है बल्कि इस्लाम के साथ इसका ऐतिहासिक रिश्ता भी काफी अहमियत रखता है. इस्लाम के दो सबसे प्रमुख तीर्थस्थल मक्का और मदीना दोनों सऊदी अरब में ही हैं और यहीं काबा और पैगंबर मोहम्मद की मजार भी है. यही वजह है कि सऊदी अरब का प्रभाव केवल अरब पड़ोसियों ही नहीं बल्कि पूरी मुस्लिम दुनिया पर है. हर साल करीब 23 लाख मुस्लिम हज के लिए मक्का जाते हैं. इस्लाम के साथ इस रिश्ते की वजह से सुन्नी अरब दुनिया नियमित तौर पर सऊदी साम्राज्य से मार्गदर्शन लेती रही है.
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वर्तमान में सऊदी साम्राज्य के बहिष्कार की अपीलें केवल शिया समुदाय से नहीं आ रही हैं बल्कि हर समुदाय इस पर एकजुट हो रहा है. ट्विटर पर कम से कम 16,000 ट्वीट्स के साथ #boycotthajj ट्रेंड कर रहा है. दुनिया भर के सुन्नी मौलवी भी हज के बहिष्कार की अपील कर रहे हैं. ट्यूनीशियन यूनियन ऑफ इमाम ने जून महीने में कहा था कि हज से सऊदी प्रशासन को मिलने वाले पैसे का इस्तेमाल दुनिया भर के मुस्लिमों की मदद करने में नहीं किया जाता है बल्कि यमन की तरह मुस्लिमों की हत्या और उन्हें विस्थापित करने में किया जा रहा है.