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नकदी की किल्लत से छोटे कारोबारियों का बिजनेस हुआ चौपट

bank-me-bheedनई दिल्ली, नोटबंदी ने देशभर में फैले बेहद छोटे कारोबारियों की पूरी अर्थव्यवस्था बिगाड़ दी है। नकदी की दिक्कत के चलते इन कारोबारियों का धंधा तो मंदा हुआ ही है, बल्कि इनकी अपनी अर्थव्यवस्था भी पूरी तरह चरमरा गई है।

छोटे-छोटे गैराज चला रहे ऑटो मैकेनिक और फूलों की सजावट करने वाले छोटे कारोबारियों को संस्थागत तौर पर किसी तरह की वित्तीय मदद नहीं होने के चलते इनका कामकाज आठ नवंबर से पहले के स्तर का 20-30 फीसद रह गया है। कार, मोटरसाइकिल, स्कूटर इत्यादि वाहनों का रिपेयरिंग गैराज चलाने वाले मैकेनिकों से लेकर फूलों का कारोबार करने वाले व्यवसायी तक मूलतः नकदी में ही काम करते हैं। चूंकि ये सभी असंगठित उद्योग का हिस्सा हैं इसलिए इन्हें अपने कारोबार को वित्तीय रूप से सपोर्ट करने के लिए चालू खाता या वर्किग कैपिटल जैसी किसी तरह की बैंकिंग सेवा उपलब्ध नहीं होती। इसलिए कलपुर्जो की खरीद से लेकर अपने सहायकों के वेतन आदि का भुगतान तक सब इन्हें नकदी में करना होता है। नोटबंदी ने इनके कामकाज को बुरी तरह प्रभावित किया है। इनका कामकाज सिमटकर 20-30 फीसद रह गया है। चूंकि ग्राहकों के लिए भी नकदी की दिक्कत है इसलिए स्थानीय मैकेनिकों के पास वही लोग जा रहे हैं जिनके पास देने के लिए नकद पैसा है।

राजधानी दिल्ली की लोदी कॉलोनी में मोटर वर्कशाप चला रहे नत्थू का कहना है कि इसके चलते उनकी कमाई पर भी असर पड़ा है। साथ ही जिन दुकानों से कलपुर्जो की खरीद की जाती है उनसे या तो उधार पर माल लिया जा रहा है या फिर ग्राहक से पहले पैसा लेकर सामान खरीदा जाता है। कमाई सिमट गई है इसलिए खर्चो को भी उसी हिसाब से समेटना नत्थू की मजबूरी बन गई है। कारोबार चलाने में कुछ इसी तरह की दिक्कतें फूल कारोबारी भी महसूस कर रहे हैं। शादी-ब्याह का सीजन होने के बावजूद उनका कारोबार इस बार फल-फूल नहीं पा रहा है। फूलों का व्यवसाय करने वाले यादातर छोटे कारोबारियों की स्थिति यही है। सबसे बड़ी मुश्किल पेमेंट मिलने की है। टेंट वाले इनके भुगतान को तो टाल रहे हैं, लेकिन मंडी में इन्हें नकद भुगतान कर ही फूल खरीदने पड़ रहे हैं।

गाजियाबाद के फूल व्यवसायी राजन कहते हैं कि ऐसे में धंधा चलाना काफी मुश्किल हो गया है। फूलों की खुदरा बिक्री से मिलने वाली नकदी के सहारे ही किसी तरह कामकाज चल रहा है। उसमें भी कमी आई है। खर्चो को कम करने के लिए न सिर्फ दुकान पर काम करने वाले सहयोगियों की संख्या में कमी करनी पड़ रही है बल्कि अन्य खर्चो को भी सीमित करना पड़ रहा है। इन सभी दिक्कतों का असर कारोबारियों के घर पर भी पड़ रहा है। राजन कहते हैं, दुकान को चलाए रखने की कोशिश में घर चलाने की मुश्किलें बढ़ रही हैं। वहां घर का सामान तो उधारी में मिल जाता है लेकिन बाकी खर्चो को पूरा करने के लिए नकदी के बिना काम नहीं चल रहा।

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