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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस लिए लिखा मुख्यमंत्रियों को पत्र

 modi-pनई दिल्ली,  सरकार ने बताया कि देश की विभिन्न अदालतों में सवा तीन करोड़ से ज्यादा मामले लंबित हैं। विधि एवं न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने लोकसभा में प्रश्नकाल के दौरान भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के मोहम्मद सलीम के पूरक प्रश्न के उत्तर में बताया कि 30 सितंबर 2016 को उच्चतम न्यायालय में 62 हजार 16, उच्च न्यायालयों में 40 लाख 12 हजार तथा जिला अदालतों में दो करोड़ 85 लाख मामले लंबित थे। उन्होंने कहा कि वर्ष 2009 से 2016 के दौरान उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों में कमी आयी है। उन्होंने बताया कि लंबित मामलों के जल्द निपटारे के लिए सरकार अदालतों में न्यायाधीशों के खाली पड़े पदों को जल्द भरने के प्रयास कर रही है।

साथ ही अदालतों में ढांचागत विकास पर निवेश बढ़ाया जा रहा है और 1800 त्वरित अदालतें बनाकर महिलाओं तथा बच्चों से जुड़े मामलों को जल्द सुलझाने का निर्देश दिया गया है। कर्नाटक और पश्चिम बंगाल के सदस्यों द्वारा उनके राज्यों में उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के लगभग 50 प्रतिशत पद खाली पड़े होने का मामला उठाये जाने पर उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालयों के कॉलेजियम द्वारा सुझाए गए नामों में से 30 प्रतिशत उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम द्वारा खारिज कर दिए जाते हैं। उन्होंने बताया कि मोदी सरकार ने उच्च न्यायालयों में 126 न्यायाधीशों की नियुक्ति की है तथा इस प्रक्रिया में तेजी लाई जा रही है।

त्वरित अदालतों के गठन के बारे में उन्होंने कहा कि 14वें वित्त आयोग की अनुशंसा के आधार पर पांच साल में 4,144 करोड़ रुपएृ के खर्च से 1,800 ऐसी अदालतें बननी हैं। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर इस प्रक्रिया में तेजी लाने का निर्देश दिया है। उन्होंने कहा कि न्यायालयों में ढांचागत विकास को लेकर सरकार गंभीर है। वर्ष 1993 से मई 2014 तक इस मद में जहां 3,445 करोड़ रुपए खर्च किये गए थे वहीं मई 2014 से अब तक इस पर 2,034 करोड़ रुपये खर्च किये जा चुके हैं।

प्रसाद ने कहा कि लोक अदालतों के जरिए वर्ष 2015 में 2.25 करोड़, वर्ष 2016 में 1.04 करोड़ तथा इस साल अब तक 6.35 लाख मामले निपटाए गए हैं। 46 प्रतिशत लंबित मामलों में सरकार के एक पक्ष होने का मुद्दा उठाए जाने पर उन्होंने कहा कि सरकार लगातार ऐसे मामलों में कमी लाने का प्रयास कर रही है। साथ ही सभी विभागों को निर्देश दिए गए हैं कि अनावश्यक रूप से अदालत में मामले दर्ज कराने से बचा जाए।

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