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महिलाओं की विवाह आयु बढ़ाकर 21 वर्ष करने संबंधी विधेयक, राज्यसभा में पेश

womenनई दिल्ली,  महिलाओं की विवाह आयु 18 से बढ़ाकर 21 वर्ष करने तथा राष्ट्रीय जनसंख्या स्थिरीकरण प्राधिकरण वाले विधेयक सहित कुल सात निजी विधेयक आज राज्यसभा में पेश किए गए। उच्च सदन में भोजनावकाश के बाद तृणमूल कांग्रेस के विवेक गुप्ता ने जनसंख्या (स्थिरीकरण) विधेयक पेश किया। इसमें महिलाओं की न्यूनतम विवाह आयु को 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष करने, दो बच्चों के मानक तथा बच्चों के बीच आयु में पर्याप्त अंतर रखने को प्रोत्साहन देने की योजनाओं की देखरेख के लिए राष्ट्रीय जनसंख्या स्थिरीकरण प्राधिकरण की स्थापना का प्रावधान किया गया है।

विधेयक में दत्तक ग्रहण को प्रोत्साहन देने, ग्रामों में मनोरंजन केन्द्रों की स्थापना करने, किसी परिवार के लिए संतान पैदा करने के कुछ न्यूनतम मानक बनाने आदि के उपबंध भी किए गये हैं। गुप्ता ने लोक प्रतिनिधित्व (संशोधन) विधेयक और संविधान (संशोधन) विधेयक 2017 (अनुच्छेद 27 क और 371 ट का अंतःस्थापन) भी पेश किए। उच्च सदन में तृणमूल कांग्रेस के सुखेन्दु शेखर राय, कांग्रेस के मोहम्मद अली खान एवं केवीपी रामचन्द्र राव ने विभिन्न प्रावधानों के साथ संविधान में संशोधन के लिए अपने एक-एक निजी विधेयक पेश किए।

सपा के संजय सेठ ने यथोचित अवासन का अधिकार विधेयक नामक अपना निजी विधेयक पेश किया। गैर सरकारी कामकाज के दौरान कांग्रेस के जयराम रमेश ने व्यवस्था का प्रश्न उठाते हुए आसन से तीन बिन्दुओं पर व्यवस्था मांगी। पहला, राज्यसभा में लाया गया कोई निजी विधेयक, वित्तीय मामलों की श्रेणी ए का है कि नहीं, यह कैसे तय होगा। दूसरा, इस मामले में क्या कानून मंत्रालय की राय ली जा सकती है। तीसरा, क्या कोई निजी विधेयक वित्तीय मामलों की श्रेणी ए का है कि नहीं, यह तय करते समय क्या लोकसभा महासचिव की राय मानी जानी चाहिए क्योंकि इसमें उच्च सदन की स्वायत्ता जुड़ी हुई है। रमेश ने कहा कि आसन की ओर से इन तीनों मु्द्दों पर स्पष्टीकरण इसलिए आवश्यक है क्योंकि यह सदन में लाए जाने वाले सभी निजी विधेयकों से जुड़ा प्रश्न है। इस पर उपसभापति पीजे कुरियन ने कहा कि कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं, इस बारे में संविधान में बहुत स्पष्ट है। इस बारे में किसी भी विधेयक पर निर्णय संविधान के प्रावधानों के अनुसार ही होता है। निजी विधेयक पर कानून मंत्रालय की राय लेने के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि यह राज्यसभा सचिवालय की प्रक्रिया से जुड़ा मामला है। इस पर सदन में चर्चा नहीं हो सकती है। सदस्य चाहें तो इस बारे में सभापति के चैंबर में जाकर उनसे बात कर सकते हैं। तीसरे बिन्दु पर उन्होंने कहा कि धन विधेयक पर संविधान के प्रावधान के तहत सभापति ही अंतिम निर्णय करते हैं।

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