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यूपी चुनाव: छठे चरण में दो बाहुबलियों की सांख दांव पर

upलखनऊ, उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव 2017 के छठवें चरण में दो बाहुबलियों की सांख दांव पर है। भोजपुरी क्षेत्र गोरखपुर के चिल्लूपार और आजमगढ़ की फूलपुर पवई विधानसभा की जनता बाहुबलियों के पुत्रों के भाग्य का फैसला चार मार्च को मतपेटी में बंद कर देगी। बता दें कि उत्तर प्रदेश में सन् 1970 के बाद से छात्र राजनीति में प्रतिद्वंदियों को करारा जवाब देने के बाद राजनीति में उतरे गोरखपुर के बाहुबली हरिशंकर तिवारी ने पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह और मुलायम सिंह यादव की सरकार में कैबिनेट मंत्री बनने का रुतबा हासिल किया।

अलग-अलग राजनीतिक दलों में रहने के बाद जब हरिशंकर तिवारी ने सन् 1997 में अपनी खुद की राजनीतिक पार्टी लोकतांत्रिक कांग्रेस बनाई, तब तक उनके खिलाफ हत्या, हत्या की कोशिश, फिरौती, बलवा कराने जैसे छोटे-बड़े 26 मुकदमें दर्ज हो गए थे। लोकतांत्रिक कांग्रेस पार्टी के साथ ही जब बहुजन समाज पार्टी से सतीश चन्द्र मिश्रा जुड़े और उन्होंने उत्तर प्रदेश में ब्राम्हणों को अपने साथ जोड़ा तो बाहुबली हरिशंकर तिवारी का कुनबा उनके साथ हो लिया। इसके बाद हरिशंकर तिवारी ने अपने पुत्र विनय शंकर तिवारी को बसपा के टिकट से गोरखपुर में लोकसभा का चुनाव लड़ाया। जब विनय शंकर को भाजपा के प्रत्याशी योगी आदित्यनाथ से करारी शिकस्त मिली। वहीं, हरिशंकर तिवारी की अपनी विधानसभा सीट चिल्लूपार से बसपा ने राजेश त्रिपाठी को प्रत्याशी बनाया तो वहां से उन्हें अपनी पार्टी से चुनाव लड़ना पड़ा और चिल्लूपार की जनता ने हरिशंकर तिवारी को हरा दिया। वर्ष 2017 में हो रहे विधानसभा चुनाव के पहले चिल्लूपार विधायक राजेश त्रिपाठी ने बसपा छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया तो उनके स्थान पर बसपा ने हरिशंकर तिवारी के पुत्र विनय शंकर तिवारी को विधानसभा का टिकट दे कर मैदान में उतार दिया। विनय शंकर पर कोई आपाराधिक मुकदमा दर्ज नहीं है और उन्होंने वकालत की डिग्री ली हुई है। एक दशक से चिल्लूपार सीट को अपने कब्जो में रखे तिवारी कुनबे में एक बार फिर से जीत की हसरत जगी है और विधानसभा क्षेत्र की जनता इस रोमांचक मुकाबले की गवाह बन गयी है।

जानकारी हो कि आजमगढ़ जनपद को आतंकी छावनी कहा जाता रहा है और प्रदेश की कानून व्यवस्था को सम्भालने वाले हाथों को यहां दो-दो हाथ करना पड़ता है। समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव भी आजमगढ़ से लोकसभा चुनाव लड़े और संसद में पहुंचे। उन्होंने आजमगढ़ के बाहुबली नेता रमाकान्त यादव को हराया। एक लम्बे समय से रमाकान्त यादव भाजपा के साथ रहे है और कमल के फूल से लोकसभा चुनाव लड़ना पसंद करते हैं। बाहुबली रमाकान्त ने राजनीति में अपनी शुरूआत की तो उस पर तीन दर्जन मुकदमें दर्ज थे, जिसमें अधिकांश मामलें में उसे बरी किया जा चुका है। रमाकान्त ने अपने पुत्र अरुण यादव की भी राजनीतिक पारी की शुरुआत सन् 2007 में करा दी थी और तब समाजवादी पार्टी की टिकट से अरुण यादव ने जीत हासिल किया था। बाद में अरुण यादव ने अपने पिता रमाकान्त के रास्ते पर चलते हुये भाजपा की सदस्यता ले ली। वर्ष 2014 में सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के आजमगढ़ से चुनाव लड़ने पर सपा समर्थकों का अरुण यादव डट कर मुकाबला किया। इस दौरान कई जगहों पर तिखी झड़प भी हुई। वर्ष 2017 में भारतीय जनता पार्टी ने फूलपुर पवई विधानसभा सीट से अरुण यादव को अपना प्रत्याशी बनाया। इस बार बाहुबली रमाकान्त यादव और उनकी पत्नी रंजना यादव अपने पुत्र के लिए पवई की जनता से उनका मत मांग रही है। इसी दौरान अरुण यादव पर धारा-144 उल्लंघन का मुकदमा दर्ज हुआ है।

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