नयी दिल्ली, उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु के सचिव को सोमवार को निर्देश दिया कि वह 1995 में पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के मामले में मृत्युदंड की सजा पाए बलवंत सिंह राजोआना से संबंधित दया याचिका दो सप्ताह के भीतर फैसला करने के अनुरोध के साथ उनके (राष्ट्रपति) समक्ष पेश करें।
न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने राजोआना की रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया।
पीठ ने कहा, “इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि याचिकाकर्ता मृत्युदंड की सजा काट रहा है, हम भारत के राष्ट्रपति के सचिव को निर्देश देते हैं कि वे मामले को उनके (राष्ट्रपति) समक्ष पेश करें और दो सप्ताह के भीतर इस पर विचार करने का उनसे अनुरोध करें।”
पीठ के समक्ष याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि केंद्र सरकार ने अभी तक अपना जवाब दाखिल नहीं किया है। उन्होंने कहा कि अन्य मामलों पर निर्णय हो चुका है, लेकिन याचिकाकर्ता के मामले में सरकार ने कहा कि निर्णय लेने का यह सही समय नहीं है।
उन्होंने आश्चर्य जताते हुए कहा, “जब उसका जीवन समाप्त हो जाएगा, तो इस पर निर्णय कब होगा।”
इसके बाद पीठ ने केंद्र सरकार के अधिवक्ता के पेश न होने पर नाराजगी व्यक्त की।
राजोआना की दया याचिका पर फैसला करने में 12 साल की अत्यधिक देरी पर सवाल उठाया गया था।
पंजाब सरकार ने कहा कि केंद्र सरकार ने पहले दावा किया था कि अगर उसे रिहा किया गया तो यह राष्ट्रीय खतरा होगा।
शीर्ष अदालत ने 4 नवंबर को राजोआना को अंतरिम राहत देने पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसने अपनी दया याचिका पर निर्णय लेने में अत्यधिक देरी के कारण अपनी सजा कम करने की गुहार लगाई थी।
राजोआना की ओर से पेश श्री रोहतगी ने कहा था कि यह एक चौंकाने वाला मामला है क्योंकि याचिकाकर्ता 29 वर्षों से हिरासत में है और कभी जेल से बाहर नहीं आया।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तब कहा था कि उन्हें इस मामले में निर्देश लेने की आवश्यकता है।
शीर्ष अदालत ने 3 मई 2023 को भी दया याचिका पर फैसला करने में 10 साल से अधिक की अत्यधिक देरी के कारण राजोआना की मौत की सजा को कम करने की याचिका को खारिज कर दी थी। तब अदालत ने कहा था कि ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर निर्णय लेना कार्यपालिका का अधिकार क्षेत्र है।
पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह सहित 16 अन्य लोगों की 31 अगस्त 1995 को एक बम विस्फोट में मृत्यु हो गई थी, जबकि 10 से अधिक अन्य घायल हो गए थे।
इस मामले में याचिकाकर्ता राजोआना को 27 जनवरी 1996 को गिरफ्तार किया गया था।
जिला अदालत ने 27 जुलाई 2007 को याचिकाकर्ता के साथ-साथ सह-आरोपी जगतार सिंह हवारा, गुरमीत सिंह, लखविंदर सिंह, शमशेर सिंह और नसीब सिंह को दोषी ठहराया था। याचिकाकर्ता के साथ-साथ सह-आरोपी जगतार सिंह हवारा को मौत की सजा सुनाई गई थी। उच्च न्यायालय ने 10 दिसंबर 2010 को याचिकाकर्ता की दोषसिद्धि और सजा की पुष्टि की थी। उच्च न्यायालय ने हालांकि जगतार सिंह की मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया था।