लोकसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे को लेकर सपा और बसपा के बीच कोई विवाद पैदा ना हो इसके लिए दोनों पार्टियों के बीच अनौपचारिक रूप से इस बात पर भी समहति बनी है कि दोनों दल एक दूसरे के नेताओं का शिकार नहीं करेंगे. सूत्रों का कहना है कि सपा, बसपा के बागियों को अपनी पार्टी में शामिल नहीं करेगी जबकि बसपा भी इसी आधार पर सपा के बागियों को अपनी पार्टी में शामिल नहीं करेगी. हालांकि इस मामले में कोई लिखित अधिसूचना जारी नहीं की गई है, लेकिन दोनों पार्टियों के वरिष्ठ नेताओं ने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले इसे विश्वास निर्माण में एक बड़ा कदम बताया है.
सपा के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने बताया कि पिछले दो महीने से बसपा के किसी भी दलबदलू नेता ने सपा का दामन नहीं थामा है. उन्होंने कहा, ”जब से सपा और बसपा ने लोकसभा चुनावों में बीजेपी को रोकने के लिए गठबंधन बनाने का सैद्धांतिक रूप से फैसला किया है, तब से दोनों दलों के नेताओं के परस्पर पाला बदलने पर रोक लग गई है.” सिर्फ इतना ही नहीं उन्होंने यह भी कहा कि इस तालमेल के कारण दोनों दलों के दलबदलू नेता किसी तीसरे दल में जाने से भी कतरा रहे हैं.
एसपी और बीएसपी के गठबंधन की घोषणा के बाद उनका मन बदल गया है. बसपा के भी एक नेता ने राजेंद्र चौधरी के बयान का समर्थन करते हुए कहा कि तकरीबन दो महीने आगरा में सपा के एक पूर्व प्रत्याशी ने बसपा को ज्वाइन किया था. उसके बाद से इस तरह की कोई घटना नहीं हुई. इन दलों के नेताओं के मुताबिक दरअसल किसी पार्टी को मजबूत करने के बजाय पूरा दारोमदार गठबंधन को बनाने को लेकर है. इसलिए दूसरे दल का मजबूत प्रत्याशी होने के बावजूद उसे अपनी पार्टी में शामिल नहीं किया जाएगा.
सपा के एक वरिष्ठ नेता ने बताया, ‘यह स्पष्ट हैं कि जो बसपा छोड़ेगा वह बसपा नेतृत्व के खिलाफ बयान भी देगा. इसलिए हम ऐसे किसी नेता के साथ खड़े नहीं हो सकते जो दूसरी पार्टी के खिलाफ बोलता है. यह हमारी पार्टी की प्राकृतिक सद्भावना है. इसी तरह की उम्मीद हम बसपा से करते हैं. सपा नेता ने आगे कहा कि सबसे महत्वपूर्ण यह है कि समाजवादी पार्टी ने फैसला लिया है कि वह बीएसी के किसी नेता को पार्टी ने शामिल होने के लिए नहीं कहेगी. चाहे वह मजबूत उम्मीदवार ही क्यों ना हो.