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बगावत के बावजूद, अखिलेश यादव क्यों नही ले रहे शिवपाल सिंह के खिलाफ एक्शन ?

लखनऊ, समाजवादी पार्टी के बागी नेता शिवपाल सिंह यादव ने न केवल समाजवादी सेक्युलर मोर्चा बनाने की घोषणा कर दी है बल्कि अब तो उन्होने लोकसभा चुनाव में यूपी की सभी 80 सीटों पर प्रत्याशी उतारने का  ऐलान भी कर दिया है।

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लेकिन बड़े ताज्जुब की बात है कि उनके बगावती कदम के बावजूद भी पार्टी आलाकमान चुप हैं। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पूर्व में ऐसे ही कदम उठाने वाले किसी भी नेता को बख्शा नही है। चाहे वह कितना बड़ा नेता ही क्यों न हो। शिवपाल के सभी करीबियों पर अखिलेश यादव ने बिना कोई देर लगाए फौरन कार्रवाई की है। लेकिन शिवपाल सिंह के मामले मे वह खामोश हैं।

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वहीं बात यहीं खत्म नही हो जाती है। उधर, शिवपाल सिंह यादव ने भी  सेक्युलर मोर्चा बनाने की घोषणा और लोकसभा चुनाव में सभी सीटों पर प्रत्याशी उतारने का  ऐलान कर समाजवादी पार्टी से खुली बगावत करने के बावजूद अभी तक पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा नहीं दिया है। वह समाजवादी पार्टी से ही जसवंतनगर से विधायक भी हैं।

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एक और बात शिवपाल सिंह यादव और अखिलेश यादव मे समान रूप से दिखायी दे रही है कि दोनों ही इस मुद्दे पर बोलने और विशेषकर एक दूसरे की आलोचना करने से साफ बचते दिखायी दे रहें हैं। अखिलेश यादव से जब भी पत्रकारों ने शिवपाल सिंह के बारे मे सवाल किया  तो उन्होंने तुरंत अपनी बात को दूसरे मुद्दों पर घुमा दिया। वहीं शिवपाल सिंह ने भी कभी अखिलेश यादव पर सीधा हमला नही बोला।

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दरअसल, ये सब दो दिग्गज राजनीतिज्ञों की राजनैतिक रणनीति का अहम हिस्सा है। जिसमे बिना लाठी टूटे सांप मर जाये वाली कहावत के साथ-साथ शहीदों की उपाधि लेकर जनता की सहानुभूति बटोरने की मंशा जुड़ी है। शिवपाल सिंह यादव खुद को शहीद की उपाधि दिलाने की कोशिश में हैं इसलिये उन्होंने अभी तक खुद इस्तीफा नहीं दिया है। वह चाहतें हैं कि अखिलेश यादव उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाही करते हुये उन्हे फौरन पार्टी से बाहर निकालें।

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वहीं , 2017 के विधान सभा चुनाव मे पारिवारिक झगड़े का परिणाम देखकर, अखिलेश यादव अब लोकसभा चुनाव से ठीक पहले चाचा के प्रकरण मे विलेन नही बनना चाहतें हैं। इसलिये वह इसे परिवार की बात कहकर पल्ला झाड़ ले रहे हैं। उनकी मंशा है कि शिवपाल सिंह खुद इस्तीफा देकर समाजवादी पार्टी से अलग हो जायें। अब देखना ये है कि चाचा और भतीजे की इस सियासी लड़ाई मे कौन भारी पड़ता है?

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