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न्यायपालिका में भ्रष्टाचार का बड़ा खुलासा, 10 करोड़ लेके दी जमानत

लखनऊ, उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री गायत्री प्रजापति रेप मामले में जमानत पर हैं, लेकिन गायत्री प्रजापति को लेकर एक विवाद पैदा हो गया है.  गायत्री प्रजापति को जमानत मिलना पहले से ही तय था, उन्हें जमानत दिलवाने में एक वरिष्ठ जज भी शामिल थे.  इलाहाबाद हाईकोर्ट की एक रिपोर्ट से हवाले से बताया कि गायत्री प्रजापति को जमानत मिलने के पीछे 10 करोड़ रुपये का लेन-देन हुआ था.

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यह खुलासा तब हुआ जब इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस डीबी भोसले प्रजापति को जमानत दिए जाने के लिए जांच कमेटी गठित की. जिसके जांच में पाया गया है कि संवेदनशील न्यायालयों में जहां रेप और मर्डर जैसे जघन्य अपराधों की सुनवाई होती है वहां जजों की नियुक्ति में बड़े पैमाने पर धांधली हुई.

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अपनी रिपोर्ट में चीफ जस्टिस भोसले ने कहा है कि जिला एवं सत्र न्यायधीश ओपी मिश्रा, जिन्होंने गायत्री को 24 अप्रैल को जमानत दी, उनकी पोस्टिंग 7 अप्रैल को पोक्सो कोर्ट में उनके रिटायरमेंट से ठीक तीन हफ्ते की गई. इतना ही नहीं जस्टिस मिश्रा की नियुक्ति नियमों की अनदेखी करते हुए और उस जज को हटाकर की गई जो इस कोर्ट में सभी मामले को पिछले एक साल से अच्छी तरह से देख रहे थे.

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रिपोर्ट में उन्होंने कहा कि जमानत की डील 10 करोड़ रुपए में तय हुई. जिसमे से 5 करोड़ उन तीन वकीलों को मिले जिन्होंने इसमें मध्यस्थता की और बाकी के 5 करोड़ जस्टिस मिश्रा और डिस्ट्रिक्ट जज राजेंद्र सिंह को मिले. डिस्ट्रिक्ट जज राजेंद्र सिंह ने ही जस्टिस मिश्रा की नियुक्ति पोक्सो कोर्ट में की थी.

यही वजह था कि जस्टिस सिंह की हाई कोर्ट में नियुक्ति सवालों के घेरे में आ गई. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने उनका उनका नाम वापस ले लिया. मामले में आगे की कार्रवाई लंबित है.

अपनी गोपनीय रिपोर्ट में जस्टिस भोसले ने कहा, “ 18 जुलाई 2016 को पोक्सो जज के रूप में लक्ष्मी कान्त राठौर की तैनाती की गई थी और वह ईमानदारी के साथ बेहतरीन काम कर रहे थे. उन्हें अचानक से हटाने और उनके स्थान पर 7 अप्रैल को ओपी मिश्रा की पोक्सो जज के रूप में तैनाती के पीछे कोई औचित्य या उपयुक्त कारण नहीं था. मिश्र की तैनाती तब की गई जब उनके रिटायर होने में मुश्किल से तीन सफ्ताह का समय बचा था.”

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गायत्री प्रजापति के खिलाफ रेप के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस ने 17 फ़रवरी को एफआईआर दर की थी. जिसके बाद गायत्री गायब हो गए थे और उन्हें 15 मार्च को गिरफ्तार कर लिया गया था. 24 अप्रैल को उन्होंने ओपी मिश्रा की कोर्ट में जमानत की अर्जी दी और जांच जारी रहने के बावजूद कोर्ट ने उन्हें जमानत दे दी थी.

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इस जांच में सामने आया है कि किस तरह से बार एसोसिएशन के पदाधिकारी तीन वकीलों ने मिश्रा की पोक्सो कोर्ट में नियुक्ति की डील फिक्स कराई. गायत्री को जमानत मिलने से पहले मिश्रा के चैम्बर में जिला जज और तीन वकीलों की तीन चार हफ्ते पहले कई बार मीटिंग हुई. इसके बाद आखिरी बैठक 24 अप्रैल को हुई और इसी दिन प्रजापति को जमानत दे दी गई.

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