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अखिलेश यादव ने कहा,सामाजिक न्याय की अवधारणा को साकार करना अहम चुनौती

लखनऊ, समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि सामाजिक न्याय की अवधारणा को साकार करने के लिए जब आबादी के हिसाब से जनसंख्या के आंकड़े आएंगे तभी आनुपातिक अवसर की सुविधा सबको मिल सकेगी।

पार्टी मुख्यालय पर ध्वजारोहण करने के बाद आयोजित समारोह को संबोधित करते हुये श्री यादव ने शनिवार को कहा कि गांधी जी, आचार्य नरेन्द्र देव, लोकनायक जयप्रकाश नारायण तथा डाॅ राममनोहर लोहिया और बाबा साहब डाॅ भीमराव अम्बेडकर समेत स्वतंत्रता सेनानियों ने देश की आजादी के साथ जो सपने देखे थे, उनके रास्ते पर चलते हुए उनके अधूरे कामों को पूरा करने का संकल्प लेना ही उनके प्रति हमारी श्रद्धा और कृतज्ञता का ज्ञापन होगा।

उन्होने कहा “ आज आत्मालोचन का भी दिन है कि 74 वर्षों में दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले हम कहां तक पहुंचे है। नौकरी, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार के क्षेत्र में कहां खड़े है। सामाजिक न्याय की अवधारणा को साकार करने के लिए जब आबादी के हिसाब से जनसंख्या के आंकड़े आएंगे तभी आनुपातिक अवसर की सुविधा सबको मिल सकेगी।

श्री यादव ने कहा कि लोकतंत्र की शक्तियों के समक्ष गम्भीर चुनौतियां है। राजनीति में शुचिता और समदर्शिता की जगह नफरत और बंटवारे को बढ़ावा नही दिया जाना चाहिए। देश को प्रगति और विकास के रास्ते पर ले जाना है तो पूंजी और सत्ता की हिंसा से विलग समाजवाद का विकल्प ही अपनाना होगा। किसान, नौजवान, कमजोर वर्ग और शोषित की लड़ाई लड़कर ही हम समतामूलक समाज की नींव रख सकेंगे।

उन्होने कहा कि आज देश की सीमाओं पर संकट है, कृषि अर्थव्यवस्था दबाव में है, बेकारी बेलगाम है, छात्र वर्ग कुंठित है। बुनकर, दस्तकार, छोटा, मझोला किसान, व्यापारी कर्ज और निराशा में आत्महत्या करने को विवश है।ऐसे में स्वतंत्रता संग्राम के दिनों के मूल्यों और संविधान के मूलभूत आदर्शों को बचाने की लड़ाई भी हमें लड़नी होगी। आजादी व्यक्ति और राष्ट्र दोनों के लिए कीमती है। अशिक्षा, अंधविश्वास, बेकारी, बीमारी के विरूद्ध एकजुटता आवश्यक है। उन्होंने जनता का आह्वान किया कि राष्ट्र की प्रगति और उत्थान के लिए एकजुट होकर संघर्ष करें।

श्री यादव ने कहा कि आज कोरोना संक्रमण और बिगड़ती कानून व्यवस्था की स्थिति चिंता का विषय है। श्रमिकों के बड़ी संख्या में विस्थापन से नई समस्याएं पैदा हुई हैं। सत्त्तारूढ़ दल का रवैया इस मानवीय त्रासदी में भी विद्वेषपूर्ण, अपमानजनक नहीं होना चाहिए।