Breaking News

कांशीराम जी के योगदान को किसी दल से जोड़कर देखना उचित नहीं

बहुजन नायक कांशीराम जी बहुजन समाज पार्टी से जोड़कर देखना बेमानी होगी, यह सही है कि देश में 6743 जातियों में बंटे दलित और पिछड़े वर्ग को एकजुट करने और अल्पसंख्यक धार्मिकों को उनके अधिकार दिलाने के लिए कांशीराम जी ने बहुजन समाज पार्टी का गठन किया और अपने सामाजिक संगठन बामसेफ के जरिये 85 फीसदी बहुजन समाज जिनमें दलित, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक समाज शामिल है, इन्हें एक बैनर तले एकजुट करके ना टूटने वाला समाज स्थापित किया और इन जातियों के बीच रोटी का सम्बन्ध स्थापित करके इनके बीच सामाजिक भाईचारा मजबूत किया। बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर दलितों के बीच रोटी-बेटी का रिश्ता स्थापित करने के लिए प्रयासरत थे, उनका मानना था कि यदि वे यह काम करने में सफल हो जाते हैं तो तीन हजार जातियों में बंटे दलित समाज को एक सूत्र में बाँधा जा सकता है। कांशीराम जी ने बाबा साहब के बारे में अध्ययन किया और पाया कि केवल दलित जातियों को एकजुट करके मनुवादी व्यवस्था के खिलाफ मजबूत संघर्ष नहीं किया जा सकता है और ना ही इन ताकतों को शिकस्त दी जा सकती है। उनका मानना था कि लोकतंत्र में संख्याबल का ही सबसे ज्यादा महत्त्व होता है और सबसे अधिक संख्या बहुजन समाज के लोगों की है और इसी बात को ध्यान में रखकर उन्होंने 85 फीसदी आबादी वाले बहुजन समाज जिनमें दलित, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक समाज के लोग हैं, इनके बीच सामाजिक भाईचारा स्थापित करके देश के सबसे बड़े राज्य यूपी में सपा के साथ गठबंधन करके भाजपा को सत्ता में आने से रोक दिया। यूपी जैसे विशाल आबादी वाले राज्य में अभिनव प्रयोग करके उन्होंने अपने नौ साल के सियासी सफ़र के दौरान ही राजनीतिक चमत्कार करके दिखा दिया, लेकिन मौजूदा नेतृत्व ने इसे बंद कर दिया, कांशीराम जी का सबसे बड़ा योगदान पूरे बहुजन समाज के बीच एकता स्थापित करना रहा है, उनके इस अद्वितीय योगदान को किसी एक पार्टी से जोड़कर देखना उनके साथ नाइंसाफी होगी। कांशीराम जी ने वंचितों में सत्ता की ललक पैदा की और उन्हें ये बताया कि राजनीतिक सत्ता वह मास्टर चावी है जिससे तरक्की के सारे दरवाजे खुलते हैं, इसी का नतीजा रहा कि बहुजन समाज में सत्ता की ललक जागी और सामाजिक-राजनीतिक तौर पर सबसे पिछड़े समाज ने सत्ता में भागीदारी हासिल की। सही मायने में कांशीराम जी ने बाबा साहब की विचारधारा को मूर्तरूप दिया। उन्होंने किसी भी पार्टी का नाम नहीं लिया और नारा दिया जो बहुजन की बात करेगा वह दिल्ली में राज करेगा।

दरअसल बहुजन समाज को एकजुट करने की बात करने वाले अन्य सियासी दल दलितों और पिछड़ा वर्ग का वोट पाने के लिए बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर के नाम का खूम इस्तेमाल करते हैं, लेकिन बहुजन समर्थक दल भी कांशीराम जी को बहुजन समाज पार्टी से जोड़कर देखते हैं और इसी वजह से वह चाहकर भी अपने कार्यकर्मों या आयोजनों में खुलकर कांशीराम जी की बात नहीं करते हैं और ना ही उनके सफल सामाजिक आन्दोलन को लेकर ही कोई चर्चा करते हैं, निश्चित तौर पर कांशीराम जी के बताये रास्ते पर चलकर बहुजन समाज पार्टी को आन्दोलन चलाना चाहिए, लेकिन बसपा नेतृत्व ने लम्बे समय से अपने को कांशीराम जी के आदर्शों व उनके बताये रास्ते पर चलने से दूर कर रखा है, ऐसे में बहुजन समाज के बीच एकता की बात करने वाले दल जो वास्तव में दलित व पिछड़ा वर्ग में पैदा होने के कारण अपने और अपने समाज के अपमान का दंश झेल चुके हैं, उन्हें कांशीराम जी की विचारधारा को लेकर आगे बढ़ने की जरूरत है, क्योंकि कांशीराम जी ने ही इन वर्गों के बीच अपनी जाति को लेकर पनपी कुंठा और अपमान को स्वाभिमान में तब्दील किया और पूरे देश के साथ ही खासतौर पर यूपी में दलित और पिछड़ा वर्ग के लोग जो पहले अपनी जाति छिपाते थे, कांशीराम जी के आन्दोलन के बाद ये वर्ग अपनी जाति को बताने में गर्व महसूस करने लगे, उनके इस योगदान को केवल एक पार्टी से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए, कांशीराम जी ने बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर के साहित्य का अध्ययन किया और पाया कि 6743 जातियों में बंटे बहुजन समाज की हर जाति के संस्कार, रीतिरिवाज, पहनावा और बोलचाल सब अलग है, ऐसे में इन जातियों के बीच रोटी-बेटी का सम्बन्ध स्थापित करना टेढ़ी खीर है, इसी बात को ध्यान में रखकर उन्होंने इन जातियों के बीच रोटी का सम्बन्ध स्थापित करने के लिए अपने सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में सामूहिक भोज के आयोजन के जरिये इनके बीच रोटी का सम्बन्ध स्थापित करने में सफलता हासिल की, इस तरह के आयोजनों के लगातार आयोजित होते रहने की जरूरत थी, उन्होंने 85 फीसदी शोषित-वंचित समाज को एक सूत्र में बाँधने के लिए बहुजन समाज के महापुरुषों के जन्मदिवस के मौके पर मेलों का आयोजन किया, जिसमें दक्षिण से लेकर पूर्वोत्तर व हिंदी भाषी राज्यों के लोगों को आमंत्रित किया इस बहाने लोग एक दूसरे के संस्कार जानने लगे और इनमें सामाजिक एकता स्थापित हुई। वंचित समाज को एकजुट करने के लिए ये ही सबसे अच्छा और प्रमाणित तरीका है, जिसे कांशीराम जी ने करके भी दिखाया है और इसी एकता के सहारे उन्होंने ना केवल दलितों, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न को रोका बल्कि इसी एकता के सहारे बसपा को यूपी में चार बार सरकार बनाने में सफलता मिली।

वैसे इस सम्बन्ध में सामाजिक संस्था बहुजन भारत के अध्यक्ष और पूर्व आईएएस कुंवर फ़तेह बहादुर का कहना है कि बहुजन समाज की विभिन्न जातियों के बीच सामाजिक गठबंधन स्थापित करने के साथ ही इन जातियों में राजनीतिक चेतना पैदा करने का श्रेय बहुजन नायक कांशीराम जी को ही जाता है, उनकी चमत्कारिक नेतृत्व क्षमता का ही नतीजा रहा कि कुछ समय के संघर्ष के दौरान ही देश का सबसे बड़ा दलित, शोषित और वंचित वर्ग एक बैनर के नीचे इकट्ठा हो गया। देश और खासतौर पर यूपी में बहुजन समाज की लीडरशिप को कांशीराम जी के बताये रास्ते पर ही चलना होगा, तभी संविधान और बहुजन समाज विरोधी सरकार को शिकस्त दी जा सकती है और केवल इसलिए कांशीराम जी के नाम को लेने से परहेज करने वाले लोगों को इस बात पर भी गंभीरता से विचार करना होगा कि कांशीराम जी केवल बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष ही नहीं थे बल्कि वह एक सच्चे समाज सुधारक और करोड़ों बेजुबान शोषित-वंचित समाज के लोगों को मुंह में जुबान देने वाले मसीहा थे, इसलिए उनके आदर्शों पर चलकर की बहुजन समर्थक सियासी दल संविधान विरोधी ताकतों को शिकस्त दे पाएंगे।

कमल जयंत (वरिष्ठ पत्रकार)।