अब किडनी खराब होने पर नहीं ढूंढना पड़ेगा डोनर, नई तकनीक का हुआ आविष्कार…
February 8, 2019
नई दिल्ली, किडनी खराब होने पर लोगों को आमतौर पर किडनी के लिए डोनर को ढूंढना पड़ता है. लेकिन अब नई तकनीक के आ जाने से किडनी खराब हो जाने पर डोनर को नहीं ढूंढना पड़ेगा. इस तरह किडनी का विकास किया जा सकता है, जिसे दुनिया में किडनी दाताओं की कमी की समस्या से निजात मिल सकती है.
जापान में शोधकर्ताओं के एक दल ने कुछ डोनर स्टेम सेल्स (मूल कोशिकाओं) से चूहों में गुर्दे का विकास किया है, जिसके बाद इस बात की उम्मीद जगी है कि इस तरह गुर्दे का विकास किया जा सकता है, जिसे दुनिया में गुर्दा दाताओं (Kidney donors) की कमी की समस्या से निजात मिल सकती है. अगले पखवाड़े नेचर कम्यूनिकेशन जर्नल में प्रकाशित होने वाले इस शोध के नतीजों के अनुसार, विकसित किए गए नए गुर्दे काम करते हुए प्रतीत होते हैं.
बशर्ते इस संकल्पना की वैधता का प्रमाण मिले कि इसका इस्तेमाल पशुओं के भीतर मानव गुर्दे को विकसित करने में किया जा सकता है. गुर्दा रोग से पीड़ित जो मरीज अंतिम अवस्था में हैं, उनके लिए गुर्दा प्रत्यारोपण ही एकमात्र उम्मीद है, जिससे वे अपनी शेष जिंदगी जी सकते हैं. लेकिन अनेक मरीज गुर्दा प्रत्यारोपण (Kidney donors) नहीं करवा पाते हैं, क्योंकि दुनिया में गुर्दा दानकर्ताओं का काफी अभाव है.
शोधकर्ता मानव शरीर के बाहर स्वस्थ अंग विकसित करने की विधि तैयार करने की दिशा में भी काम कर रहे हैं. इसी विधि से चूहे का अग्नाशय तैयार करने में उनको आशावादी परिणाम मिले हैं. जापान के नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर फिजियोलोजिकल साइंसेज के शोधकर्ताओं ने इस बात की जांच करने का फैसला किया है कि क्या इस विधि का इस्तेमाल मानव गुर्दा तैयार करने में किया जा सकता है. विश्वविद्यालय के मासूमी हिराबायाशी ने कहा, “हमारे नतीजों से इस बात की पुष्टि होती है कि गुर्दा बनाने में इंटरस्पेशिफिक ब्लास्टोसिस्ट कंप्लीमेंटेशन एक व्यावहारिक विधि है.”