उपचुनाव: कैराना लोकसभा सीट पर अखिलेश यादव ने एकबार फिर खेला बड़ा दांव…
May 5, 2018
लखनऊ, उपचुनाव में समाजवादी पार्टी की जीत को लगातार बरकरार रखने के लिये, सपा के राष्ठ्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने एकबार फिर बड़ा दांव खेला है। फूलपुर और गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव में बीएसपी की मदद से जीत दर्ज करने के बाद पश्चिमी यूपी में चौधरी अजित सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) से कैराना और नूरपुर उपचुनाव के लिए गठबंधन कर बड़ा दांव खेला है।
सूत्रों के अनुसार, आरएलडी से समाजवादी पार्टी ने कैराना और नूरपुर उपचुनाव के लिए गठबंधन किया है। इसके तहत कैराना लोकसभा सीट आरएलडी उम्मीदवार के हिस्से में आएगी, जबकि नूरपुर में समाजवादी पार्टी उम्मीदवार चुनाव लड़ेगा। अखिलेश यादव की नई रणनीति के तहत, कैराना लोकसभा सीट को लेकर समाजवादी पार्टी ने अब रालोद के साथ एक समझौता किया है।
समाजवादी पार्टी नेता तबस्सुम हसन आरएलडी के सिंबल से कैराना लोकसभा सीट से मैदान में उतरेंगी। वहीं नूरपुर सीट से समाजवादी पार्टी , नइमुल हसन को चुनाव लड़ायेगी। नईम को राष्ट्रीय लोकदल पूरा समर्थन देगी। अखिलेश यादव की रणनीति के तहत ही, गोरखपुर में भी निषाद पार्टी के प्रत्याशी ने सपा के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ा था और जीत हासिल की थी।
अजित सिंह तबस्सुम को आगे कर अपने पिता चौधरी चरण सिंह के वक्त के जाट-मुस्लिम समीकरण को साधना चाहते हैं, जो 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे के बाद जाट-मुस्लिम के बीच पैदा हुई खाई से टूट गया था। इसके लिए अजित सिंह और उनके पुत्र जयंत चौधरी दो महीने से सद्भावना मुहिम चला रहे थे।
कैराना की सियासत में तीन प्रमुख घराने सत्ता का केंद्र माने जाते हैं। इनमें स्वर्गीय हुकुम सिंह, स्वर्गीय मुनव्वर हसन और सहारनपुर के काजी रशीद मसूद का परिवार प्रमुख है। इस क्षेत्र में हसन परिवार का खासा राजनीतिक दबदबा माना जाता रहा है। 2009 के लोकसभा चुनाव में तबस्सुम कैराना सीट से जीत चुकी हैं। वर्ष 1996 में इस सीट से एसपी के टिकट पर सांसद चुने गए मुनव्वर हसन की पत्नी तबस्सुम बेगम वर्ष 2009 में इस सीट से संसद जा चुकी हैं। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में इस परिवार में टूट हुई थी। तब मुनव्वर के बेटे नाहिद हसन एसपी के टिकट पर और उनके चाचा कंवर हसन बीएसपी के टिकट पर चुनाव लड़े थेलेकिन दोनों को पराजय का सामना करना पड़ा था। हालांकि नाहिद दूसरे स्थान पर रहे थे।
कैराना लोकसभा क्षेत्र में लगभग 17 लाख मतदाता हैं। इनमें तीन लाख मुसलमान, लगभ, चार लाख पिछड़े और करीब डेढ़ लाख वोट जाटव दलितों के हैं, जो बीएसपी का परंपरागत वोट बैंक माना जाता है। यहां दलित और मुस्लिम मतदाता खासे महत्वपूर्ण हैं। राजनीतिक जानकारों की मानें तो इस क्षेत्र मे राष्ट्रीय लोकदल प्रभावी रही है, अगर एसपी और बीएसपी के साथ आरएलडी का वोट भी जुड़ जाता है, तो बीजेपी के लिये जीत मुश्किल हो जायेगी।