आरक्षण को लेकर डॉ. लालजी निर्मल ने खोला मोर्चा, विपक्षी दलों पर साधा निशाना
June 26, 2018
लखनऊ, योगी सरकार मे राज्यमंत्री और अनुसूचित जाति वित्त एवं विकास निगम के अध्यक्ष डॉ. लालजी प्रसाद निर्मल ने आरक्षण को लेकर मोर्चा खोल दिया है। उन्होने आरक्षण व्यवस्था संविधान के अनुरूप न लागू होने देने के लिये विपक्षी दलों को आड़े हाथों लिया।
डॉ. लालजी प्रसाद निर्मल ने आज आयोजित प्रेसवार्ता मे कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में दलितों का आरक्षण न होना राष्ट्रीय आरक्षण नीति का खुला मजाक है। यदि यहां पर मनमानी नहीं की गई होती, तो अब तक लाखों दलित छात्रों का भला हो गया होता। सबसे बड़ी बात ये है कि इस देश में सबसे अधिक समय तक हुकूमत कर रही कांग्रेस ने इस पर पर्दा डालने का काम किया। कांग्रेस को वोट बैंक की राजनीति करनी थी। इस लिए दलितों के हितों की इस आवाज को दबा दिया गया, जबकि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान नहीं है। इसके बाद भी देश की आजादी के बाद कभी भी दलितों के आरक्षण को लेकर इस दिशा में काम करने की जरूरत नहीं समझी गई।
डॉ. लालजी प्रसाद निर्मल ने कहा कि बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर तथा संविधान सभा के सदस्यों ने देश की भावना के अनुरूप अनुसूचित जाति तथा जनजाति के लिए एक अनिवार्य आरक्षण नीति की व्यवस्था संविधान के लागू होते ही 1950 के बाद कर दी थी। इसके बाद भी सरकारों ने दलितों के हितों को नजर अंदाज किया। केंद्रीय शिक्षण संस्थानों में प्रवेश के लिए अधिनियम 2006 (एक्ट-2006) के द्वारा 3 जनवरी 2007 को आरक्षण लागू करने की घोषणा कर दी गई थी। इसके बाद भी प्रदेश की मायावती सरकार और अखिलेश यादव की सरकार ने इसे दरकिनार किया, जबकि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में अनुसूचित जाति और जनजाति के अध्यापकों और विद्यार्थियों के लिए यहां पर 22.5 फीसदी आरक्षण देने का प्राविधान है।
उन्होने बताया कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अपनी स्थापना के समय 1920 से ही केंद्रीय विश्वविद्यालय है और इसे अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त नहीं है। भारत की संविधान सभा ने अलीगढ़ विश्वविद्यालय और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय दोनों को सातवी अनुसूची की संघीय अनुसूची-1 में रखा है। और इस संघीय सूची में कोई भी अल्पसंख्यक संस्थान नहीं रखे जा सकते।
डॉ. लालजी प्रसाद निर्मल ने कहा कि वर्ष 1951 में भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद ने संसद में कहा था कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय केंद्रीय विश्वविद्यालय है, तथा अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है। वर्ष 1968 में सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने मुख्य न्यायधीश के एन वांचू के नेतृत्व में सर्वसम्मति से घोषणा की कि अलीगढ़ विश्वविद्यालय अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है।
उन्होने बताया कि वर्ष 1981 में कांग्रेस की सरकार ने राजनैतिक फायदे के लिए अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की परिभाषा को बदलकर विश्वविद्यालय अर्थात भारत के मुसलमानों द्वारा स्थापित अपनी पसंद का शिक्षा संस्थान ‘’जो मोहम्डन एंग्लो ओरियंटल कॉलेज से प्रारंभ हुआ है और अलीगढ़ विश्वविद्यालय के रूप में समाविष्टित हुआ’’ कांग्रेस द्वारा यह प्रयास देश को भ्रमित करने और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक दर्जा देने का प्रयास था। इतना ही नहीं, 1981 में कांग्रेस ने इस एक्ट में एक और संशोधन किया और धारा 5 (2) (सी) के तहत यह जोड़ा कि ‘’ भारत के मुस्लमानों के सांस्कृतिक तथा शैक्षणिक विकास के लिए प्रयास किए जाएं। जबकि विश्वविद्यालय के एक्ट की धारा 8 के अनुसार प्रारंभ से ही यह व्यवस्था की गई थी कि विश्वविद्यालय लिंग, जाति, भाषा, धर्म आदि के आधार पर किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं करेगा।
डॉ. लालजी प्रसाद निर्मल ने कहा कि कांग्रेस का प्रयास पूरी तरह से मुस्लमानों को खुश रखना तथा पिछले दरवाजे से एएमयू को अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय बनाना था। इसके विरुद्ध इलाहाबाद हाईकोर्ट में दायर याचिका भी खारिज कर दी गई और कहा गया कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान नहीं है। इलाहाबाद हाईकोर्ट वर्ष 2005-2006 के निर्णय के खिलाफ अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, जिस पर सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से मना कर दिया।
उन्होने बताया कि वर्तमान स्थिति में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्याय बीएचयू की भांति केंद्रीय विश्वविद्यालय है, जिसमें आरक्षण लागू करना बांध्यकारी है। किन्तु एएमयू प्रशासन दलितों को आरक्षण न देकर आरक्षण अधिनियम का उल्लंघन कर रहा है, जो अनुसूचित जाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 के तहत दंडनीय अपराध है।