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“महाड़ सत्याग्रह”- सामाजिक सशक्तिकरण हेतु क्रांतिकारी पहल

भारत मे जबसे आर्यों ने अपना शासन स्थापित किया तबसे शूद्रों पर अत्याचार जारी रखा। हिन्दू आर्यों ने शूद्रों पर अत्याचार की सारी हदें पार कर दिया था। अगर हम आधुनिक काल की भी बात करें तो भी शूद्रों को तालाब में पानी पीने की इजाजत नहीं थी। जबकि अगस्त 1923 को बॉम्बे लेजिस्लेटिव कौंसिल के द्वारा एक प्रस्ताव लाया गया, कि वो सभी जगह जिनका निर्माण और देखरेख सरकार करती है, ऐसी जगहों का इस्तमाल हर कोई कर सकता है। इस प्रस्ताव को जनवरी 1924 में उस अधिनियम को नगर निगम परिषद के द्वारा लागु किया गया। 1924 में यह बिल पास तो हो चुका था कि किसी भी सार्वजनिक तालाब में देश के सभी नागरिकों को पानी पीने का अधिकार है लेकिन हिंदुओं ने शूद्रों को पानी पीने की इजाजत नहीं दी। लोग भूख प्यास से तड़प तड़प मरते रहे लेकिन निर्दयी ठेकेदारों का पत्थर दिल नहीं पिघला। बाबा साहेब डॉ भीमराव आम्बेडकर से यह बर्दाश्त नहीं हुआ। उनकी आंखों के सामने शुद्र समाज का अपमान किया जा रहा था। अब बाबा साहेब डॉ भीमराव आम्बेडकर इसके खिलाफ एक बड़ी आंदोलन का आगाज करते हैं और वह आंदोलन था महाड़ सत्याग्रह, दिन 20 मार्च 1927.

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 महाड़ सत्याग्रह और हमारा हक
भीमराव आम्बेडकर ने सभी शुद्र व अछूत समाज के अपील किया कि सभी लोग 20 मार्च 1927 को महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के महाड़ स्थान पर एकत्रित हों। भीमराव आंबेडकर लोगों की नजर में इतने बड़े उम्मीद थे कि उनकी एक आवाज पर पूरा समाज उमड़ पड़ता था। उनका आह्वान सुनते ही 20 मार्च 1927 को महाड़ हजारों लोगों की भीड़ से भर गया। महाड़ के सार्वजनिक तालाब चावदार तालाब से पानी पीकर यह सिद्ध करना था कि अब अछूत समाज छुआछूत की इस महल का विध्वंस करने का ठान लिया है। इस सत्याग्रह में हजारों की संख्या में अछूत शामिल हुए। जैसे ही बाबा साहेब डॉ भीमराव आम्बेेडकर लोगों के साथ पानी पीने को आगे बढ़े तो पूरा वातावरण लोगों द्वारा डॉ भीमराव आम्बेडकर की जय जयकारों से गूंज उठा। सभी लोग महाड़ के चवदार तालाब पहूँचे और बाबा साहेब आम्बेडकर ने अपने दोनों हाथों से उस तालाब पानी पिया, फिर उनका अनुकरण करते हुए हजारों सत्याग्रहियों  ने भी तालाब से पानी पिया। अब सभी हिंदू जाति समूहों एवं अन्य धर्म के लोग मुस्लिम, ईसाई तक भी उस ताबाल का पानी पी सकते थे क्योंकि महाड़ सत्याग्रह अब यह सुनिश्चित कर दिया था कि सार्वजनिक तालाब पर सबका समान हक होता है। और इस तरह वर्णवादी असमानता के विरोध में बाबा साहेब ने सार्वजनिक व प्रभावकारी क्रान्ति की पहली सुरूवात की। महाड़ सत्याग्रह की महत्ता बाबा साहेब के इसी कथन से लगाई जा सकती है कि ‘महाड़ सत्याग्रह केवल पानी के लिए नहीं था बल्कि मानवाधिकार को स्थापित करने के लिए है।’ (Mahad Satyagraha not for Water but to Establish Human Rights.”) Dr Babasaheb Ambedkar Writings and Speeches, Volume 17, Part 1).

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 क्या शुद्र व अछूत हिन्दू हैं?
हिंदुओं द्वारा अछूतों को तालाब का पानी पाने के अधिकार नकारा गया था, जबकि सवर्ण हिंदू शूद्रों को हिंदू धर्म का हिस्सा मानते थे। लेकिन बात कुछ और थी। दरअसल हिंदुओं ने अछूतों को कभी हिन्दू धर्म का हिस्सा माना ही नहीं। चूंकि उन्हें गुलामों की, नौकरों की, मजदूरों की……. की जरूरत थी और सबसे बड़ी बात की कभी यहां का मूलनिवासी शुद्र समाज विद्रोह न कर दे, अतः उन्हें धर्म की चाशनी में डुबोए रखना जरूरी था… इसलिए हिंदुओं ने शूद्रों को भी हिन्दू करार दिया ताकि उनकी सत्ता, सर्वोच्चता और सिंहासन बना रहे। 20 मार्च 1927 के इस महाड़ सत्याग्रह ने क्रांतिकारी परिवर्तन को जन्म दिया।

सामाजिक सशक्तिकरण का नया रूप
बाबा साहेब ने आज के दिन तीन प्रमुख क्रांतिकारी सलाह दी थी जो कि इस प्रकार है, पहला– गंदे व्यवसाय या पेशे को छोड़कर बाहर आना। दूसरा– मरे हुए जानवरों का मांस खाना छोड़ देना और तीसरा– अछूत होने की अपनी स्वयं की हीनभावना से बाहर निकलना और खुद को सम्मान देना। यह कोई आम सूत्र नहीं थे बल्कि वंचितों में लिए भविष्य देखने का अपना नजरिया था। सभी समतापसन्द देशवासियों को “सामाजिक सशक्तिकरण दिवस” (Social Empowernment Day) पर बहुत बहुत बधाई सहित बाबा साहेब डॉ भीमराव आम्बेडकर को शत शत नमन। आज के ही दिन 20 मार्च 1927 में बाबा साहेब ने महाड़ सत्याग्रह की शुरुआत कर जातिवादी ब्राह्मणों की नींद उड़ाई थी। आज का दिन हमारे अधिकारों को सुनिश्चित करने का दिन है।
 सूरज कुमार बौद्ध
(लेखक भारतीय मूलनिवासी संगठन के राष्ट्रीय महासचिव हैं।)

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