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निचली अदालत ने दी थी मौत की सजा, सुप्रीम कोर्ट ने बरी किया

supreme-courtनई दिल्ली, पश्चिम बंगाल के एक अभियुक्त को मां-बेटी की हत्या के आरोप में ट्रायल कोर्ट ने फांसी की सजा मुकर्रर की थी। कलकत्ता हाईकोर्ट ने उसकी फांसी की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया और आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने उसे बरी करने का आदेश दिया। घटना 26 सितम्बर 2007 और 27 सितम्बर 2007 के दरम्यानी रात की है। अभियुक्त शुभंकर सरकार और देबप्रिय पाल पर माया सरकार और उनकी बेटी अनुषा सरकार की हत्या का आरोप है। मालदा के इंग्लिश बाजार पुलिस थाने में दर्ज एफआईआर के मुताबिक ये मामला शुभंकर सरकार और अनुषा सरकार के बीच प्रेम प्रसंग का है। अनुषा की मां इस प्रेम प्रसंग को स्वीकृति नहीं दे रही थी और उसने अपनी बेटी को शुभंकर से संबंध रखने से मना किया था। इसके बाद शुभंकर ने अनुषा सरकार से कई बार मिलने की कोशिशें की लेकिन वो असफल रहा। इसके बाद उसने अनुषा को धमकियां दीं। कोई सफलता न मिलते देख शुभंकर अपने दोस्त देबप्रिय पाल के साथ 26 सितम्बर 2007 की शाम अनुषा के घर गया जहां अनुषा की मां माया सरकार अकेली थी। दोनों ने माया सरकार की हत्या कर दी। हत्या के बाद वे अनुषा सरकार का इंतजार करने लगे जो ट्यूशन पढ़ने गई थी। जब वह ट्यूशन पढ़कर लौटी तो दोनों अभियुक्तों ने उसकी भी हत्या कर दी। घटनास्थल से मिले साक्ष्यों और गवाहों के बयानों के आधार पर माल्दा जिला कोर्ट ने दोनों को फांसी की सजा मुकर्रर की। कोर्ट ने इसे रेयरेस्ट ऑफ रेयर केस मानते हुए फांसी की सजा दी। इस फैसले के खिलाफ दोनों अभियुक्तों ने कलकत्ता हाईकोर्ट में अपील की। हाईकोर्ट ने उनकी अपील को आंशिक रुप से स्वीकार करते हुए उनकी फांसी की सजा कम करते हुए उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अभियुक्त ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। करीब पांच साल तक सुप्रीम कोर्ट में चली सुनवाई के बाद कोर्ट ने दोनों आरोपियों को बरी कर दिया।

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