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युवाओं के बीच, अखिलेश यादव की बढ़ती लोकप्रियता, जानिये क्यों ?

लखनऊ, समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की लोकप्रियता युवाओं के बीच सबसे अधिक बढ़ रही है। विधान सभा चुनावों मे बुरी तरह शिकस्त खाने और अपने पारिवारिक झगड़े के बावजूद अखिलेश यादव युवाओं के बीच सबसे लोकप्रिय नेताओं मे उभर रहें हैं।

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एेसा नही है कि इसका कारण उनका युवा होना है, अगर उम्र की बात करें तो इस श्रेणी मे राहुल गांधी, जयंत चौधरी, जितिन प्रसाद, वरूण गांधी, अनुप्रिया पटेल, पंकज सिंह आदि बहुत से नेता हैं लेकिन जो क्रेज युवाओं मे अखिलेश यादव को लेकर है , वह किसी अन्य नेता के लिये नही है।

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यूपी मे तो अखिलेश यादव का जादू छात्रों और  युवाओं के सर चढ़कर बोल रहा है। यूपी मे, इलाहाबाद विश्वविद्यालय सहित प्रदेश के लगभग एक दर्जन बड़े कालेजों मे समाजवादी पार्टी की छात्र इकाई समाजवादी छात्र सभा ने अपनी जीत का परचम लहराया है जो यह दर्शाता है कि यूपी मे छात्रों और युवाओं के बीच अखिलेश यादव की लोकप्रियता सबसे अधिक है। युवाओं मे अखिलेश यादव को लेकर क्रेज बढ़ रहा है।

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सी.एम.पी. डिग्री कालेज इलाहाबाद, ईश्वर शरण डिग्री कालेज इलाहाबाद, श्यामा प्रसाद मुखर्जी कालेज इलाहाबाद, सहजानन्द डिग्री कालेज गाजीपुर, हीरालाल राम निवास स्नाकोत्तर महाविद्यालय संतकबीरनगर, कुंवर सिंह कालेज, बलिया, टीडी कालेज, सतीश चन्द्र डिग्री कालेज आदि लगभग यूपी के एक दर्जन बड़े कालेजों मे भी समाजवादी छात्रसभा ने भाजपा के छात्र संगठन एबीवीपी को बुरी तरह हराया है।

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देश भर मे छात्रों और युवाओं के बीच भाजपा और आरएसएस की लोकप्रियता मे कमी आयी है यानि कि युवाओं के बीच से मोदी मैजिक समाप्त हो रहा है। पूरे देश मे उसने भाजपा को नकारा है और जहां पर उसे जो भाजपा से लड़ता नजर आया उसे जिताया है। इसीलिये देश की दस टाप यूनिवर्सिटी मे नौ पर हारने वाली तो भाजपा रही पर जीतने वाला दल एक न होकर अलग-अलग रहे।

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लेकिन अगर हम यूपी की बात करें तो यहां यूनिवर्सिटी और कालेजों के छात्र संघ चुनावों मे भाजपा को हराने का काम अखिलेश यादव के नेतृत्व मे सिर्फ समाजवादी छात्र सभा ने किया है। इससे छात्रों के बीच अखिलेश यादव के प्रति झुकाव साफ नजर आता है। सबसे महत्वपूर्ण बात है कि युवा जो देश की जनसंख्या मे सर्वाधिक है, उनका अखिलेश यादव के प्रति झुकाव का होना, दूसरे नेताओं के लिये खतरे की घंटी है।

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नौजवानों को दो करोड़ नौकरियां देने और सस्ती शिक्षा व्यवस्था का प्रलोभन देकर भाजपा ने उनका समर्थन हासिल किया था।भाजपा के अन्य वादों की तरह युवाओं से किया यह वादा भी हवाहवाई साबित हुआ है। इससे नौजवानों का भाजपा से मोहभंग हुआ है।  इस मोहभंग के फलस्वरूप ही छात्रसंघों से भाजपा के छात्र संगठन एबीवीपी का सफाया हुआ है। पिछले दिनों बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में छात्राओं से छेडखानी के मामले में एबीवीपी के नौजवानों ने जो अभद्रता की और वीसी से लेकर योगी सरकार की जो प्रतिक्रिया रही उसकी चारों ओर निंदा हुई है। कई अन्य राज्यों में भी भाजपा की छात्र-युवा विरोधी राजनीति का तीखा विरोध हुआ है। 

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वहीं, अखिलेश यादव का भरोसा नौजवानों पर है, जिसे उन्होने कई मौकों पर प्रगट किया है। उनका  मानना है कि 1942 के आजादी के आंदोलन से लेकर डा0 लोहिया और लोकनायक जयप्रकाश नारायण का युवा नेतृत्व परिवर्तन के लिए प्रेरणा रहा है। सम्पूर्ण क्रांति के लिए आपात काल का विरोध भी नौजवानों ने ही किया था। उनके अनुसार, अन्याय और शोषण के विरूद्ध युवा शक्ति ही लोकतंत्र विरोधी एवं सामाजिक सद्भाव बिगाड़ने वालों को परास्त करने में सक्षम है।

इसी के साथ अखिलेश यादव की नई प्रगतिवादी सोंच, सकारात्मक राजनीति, युवाओं को प्रोत्साहन ने उनके प्रति आकर्षण पैदा किया है। युवाओं को उनका नेतृत्व पसंद आ रहा है। जिसका असर आने वाले चुनावों मे साफ नजर आयेगा।

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