इस बोर्ड में नहीं है एक भी दलित-आदिवासी, मंत्रालय की समिति ने उठाया सवाल
August 12, 2018
नयी दिल्ली, दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन बोर्ड में शामिल 17 सदस्यों में एक भी अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य नहीं हैं। भारतीय जनता पार्टी के नेता कीर्ति सोलंकी के नेतृत्ववाले संसदीय समिति ने डीएमआरसी में अनुसूचित जाति/जनजाति का कोई सदस्य नहीं होने पर नाराजगी जाहिर की। आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय की अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति कल्याण समिति ने मानसून सत्र के दौरान संसद में पेश अपनी रिपोर्ट इस आशय की नाराजगी जाहिर की है। समिति ने कहा कि सरकार ने अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति समुदाय के कार्यकारी निदेशक या नामांकित निदेशक की नियुक्ति के लिए सरकार ने कोई गंभीर प्रयास नहीं किया है।
डीएमआरसी ने कहा कि निगम के बोर्ड पर अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति समुदाय के सदस्यों की नियुक्ति में कोई रोक नहीं थी और वे ऐसी नियुक्तियों के लिए विचार कर रहे हैं। समिति ने महसूस किया कि एससी / एसटी उम्मीदवारों की नियुक्ति के लिए बोर्ड स्तर पर दोषारोपण करने के बजाय डीएमआरसी को यह मामला डीओपीटी में ले जाना चाहिए और इनके प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने के लिए भी वास्तविक प्रयास करना चाहिए।
डीएमआरसी बोर्ड में अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति समुदाय के लिए निदेशकों के पदों के आरक्षण के लिए कोई दिशानिर्देश निर्धारित नहीं किया गया था। डीएमआरसी ने यह भी स्प्ष्ट किया, “अनुसूचित जाति एवं जनजाति के समुदाय से किसी को बोर्ड के निदेशक बनाये जाने के लिए आरक्षण देने का कोई दिशा निर्देश नहीं जारी किया गया है। निदेशकों की सभी सातों पद कैडर के पोस्ट हैं जिसके लिए कोई आरक्षण नहीं है।
निगम ने कहा है कि यह महज संयोग मात्र है कि डीएमआरसी के निदेशक मंडल में एससी / एसटी समुदाय का कोई सदस्य नहीं है।
समिति ने कहा कि डीएमआरसी जब से बनी है तब से दस उम्मीदवारों को अनुकंपा नियुक्ति दी है, जिसमें एक अनुसूचित जाति और एक जनजाति परिवार से संबंधित है। समिति ने महसूस किया कि अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों पर उदार दृष्टिकोण लिया जाना चाहिए और उन्हें अनुकंपा नियुक्ति में भी प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
भाजपा सांसद अंजू बाला और हीना गावित तथा राज्यसभा से कांग्रेस सांसद शमशेर सिंह दुल्लो इस संसदीय समिति में शामिल थे। समिति ने सिफारिश की है कि सामाजिक-आर्थिक न्याय के संवैधानिक जनादेश को देखते हुए सरकार को बोर्ड में आरक्षण के माध्यम से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का प्रतिनिधित्व करना चाहिए। कंपनी में निदेशकों या कम से कम नामांकन के माध्यम से एक निदेशक नियुक्त करके भी सरकार इसकी भरपाई कर सकती है।