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भीमा कोरेगांव- देश भर मे छापेमारी, कई विचारक गिरफ्तार, सरकार पर दलित उत्पीड़न का आरोप

नई दिल्ली, महाराष्ट्र पुलिस ने कई राज्यों में वामपंथी कार्यकर्ताओं के घरों में आज छापा मारा और माओवादियों से संपर्क रखने के संदेह में उनमें से कम से कम पांच दलित एक्टविस्ट को गिरफ्तार किया है।  जबकि मानवाधिकार कार्यकर्ता इसे सरकार के विरोध में उठने वाली आवाज को दबाने की दमनकारी कार्रवाई बता रहे हैं।

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पुलिस सूत्रों के अनुसार, भीमा कोरेगांव हिंसा की जांच के दौरान पुलिस द्वारा बरामद किए गए एक पत्र में नक्सलियों द्वारा पीएम मोदी की हत्या की साजिश का खुलासा हुआ। इसी मामले की जांच मे पांच राज्य महाराष्ट्र, गोवा, झारखंड, तेलंगाना और दिल्ली में छापेमारी कार्रवाई की गई है।

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दलित एक्टविस्ट सुधा भारद्वाज को उनके फरीदाबाद स्थित आवास से गिरफ्तार किया गया। वहीं वरवर राव को हैदराबाद से गिरफ्तार किया गया। वामपंथी विचारक अरुण फरेरा और वर्णन गोनजाल्विस भी हिरासत में लिए गए हैं। वामपंथी विचारक गौतम नवलखा को भी भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में पुलिस ने हिरासत में लिया है। इन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के पास से लैपटॉप, पेन ड्राइव और कागजात बरामद किए गए हैं। हैदराबाद से गिरफ़्तार लेखक वरवर राव पर पीएम मोदी की हत्या के लिये कथित साजिश रचने का आरोप है।

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भीमा कोरेगांव मामले में ही जून माह में रोना जैकब विल्सन, सुधीर ढावले, सुरेंद्र गाडलिंग, शोमा सेन और महेश राउत को गिरफ्तार किया गया था। विल्सन को दिल्ली से गिरफ्तार किया गया था, ढावले को मुंबई से, गाडलिंग, शोमा सेन और महेश राउत को नागपुर से गिरफ्तार किया गया था। पुलिस का कहना है कि विल्सन के दिल्ली के मुनिरका स्थित फ्लैट से एक पत्र बरामद किया गया था।

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माकपा ने विभिन्न वामपंथी विचारकों, सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ पुलिस की छापेमारी की निंदा करते हुये इसे सरकार की दमनकारी नीतियों का नतीजा बताया है। पोलित ब्यूरो ने कहा कि भीमा कोरेगांव में दलितों के विरूद्ध हिंसा की घटनाओं के बाद से महाराष्ट्र पुलिस केन्द्रीय एजेंसियों के साथ मिलकर दलित अधिकार कार्यकर्ताओं और वकीलों को निशाना बना रही है।  पार्टी ने हिंसा पीड़ितों के मुकदमे लड़ रहे वकीलों और इनकी मदद कर रहे सामाजिक कार्यकर्ताओं के विरूद्ध गैरकानूनी गतिविधि निरोधक कानून की विभिन्न धाराओं के तहत इनके खिलाफ फर्जी मामले दर्ज किये जाने का आरोप लगाया है।

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कोरेगांव – भीमा, दलित इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। वहां करीब 200 साल पहले एक बड़ी लड़ाई हुई थी, जिसमें पेशवा शासकों को एक जनवरी 1818 को ब्रिटिश सेना ने हराया था। अंग्रेजों की सेना में इस लड़ाई की वर्षगांठ मनाने के लिए हर साल पुणे में हजारों की संख्या में दलित समुदाय के लोग एकत्र होते हैं और कोरेगांव भीमा से एक युद्ध स्मारक तक मार्च करते हैं।  पुलिस के मुताबिक इस लड़ाई की 200 वीं वर्षगांठ मनाए जाने से एक दिन पहले 31 दिसंबर को एल्गार परिषद कार्यक्रम में दिए गए भाषण ने हिंसा भड़काई।

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