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लोकसभा का कार्यकाल, कई बार हुआ कम तो इसमे हुआ ज्यादा

नयी दिल्ली, लोकसभा का कार्यकाल यूं तो पांच वर्ष निर्धारित है लेकिन राजनीतिक परिस्थितयों के चलते वह सात बार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी जबकि एक बार तय समय से एक वर्ष अधिक चली। देश के संसदीय इतिहास पर नजर डाली जाये तो दो बार तत्कालीन प्रधानमंत्रियों के समय से पहले चुनाव कराने के फैसले के कारण लोकसभा का कार्यकाल पूरा नहीं हो सका जबकि पांच बार कोई सरकार नहीं बन सकने की स्थिति में लोकसभा के नये चुनाव कराने पड़े।

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एक बार लोकसभा का कार्यकाल एक वर्ष के लिए बढ़ाया गया और वह छह वर्ष तक चली। आजादी के बाद 1952 में पहली लोकसभा का गठन हुआ और पहली, दूसरी तथा तीसरी लोकसभा ने अपना पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा किया। तीसरी लोकसभा का कार्यकाल बहुत दुखद रहा। इस कार्यकाल के दौरान दो प्रधानमंत्रियों की पद पर रहते मृत्यु हो गयी। तीसरी लोकसभा का गठन 1962 के आम चुनाव के बाद हुआ था और पंडित जवाहर लाल नेहरु चौथी बार प्रधानमंत्री बने। उनका मई 1964 में निधन हो गया था।

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उनकी जगह प्रधानमंत्री बने लाल बहादुर शास्त्री का जनवरी 1966 में निधन हो गया। इन दाेनों नेताओं की मृत्यु के चलते गुलजारी लाल नंदा दो बार कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने। कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनने वाले वह देश के एक मात्र नेता थे। वर्ष 1967 में गठित लोकसभा का कार्यकाल 1972 तक था लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांंधी ने एक वर्ष पहले ही 1971 में आम चुनाव करा दिया जिससे चाैथी लाेकसभा अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी। इसके बाद बनी पांचवीं लाेकसभा के साथ एक दिलचस्प बात यह जुड़ी है कि इसका गठन निर्धारित समय से एक वर्ष पहले हुआ और यह तय समय से एक वर्ष अधिक चली।पांचवीं लोकसभा के छह वर्ष चलने का कारण देश में आपातकाल लगाया जाना था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1975 में देश में आपातकाल लगा दिया था जिसके चलते लोकसभा का कार्यकाल एक वर्ष के लिए बढ़ाया गया।

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आपातकाल उठाने के बाद 1977 में आम चुनाव हुये जिसमें कांग्रेस सत्ता से बाहर हाे गयी और जनता पार्टी की सरकार बनी। जनता पार्टी में उठापटक के कारण 1977 में बनी छठी लोकसभा अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी और 1980 में नये चुनाव कराये गये। सातवीं और आठवीं लोकसभा पूरे कार्यकाल तक चली। सातवीं लोकसभा के कार्यकाल में इंदिरा गांधी की प्रधानमंत्री पद पर रहते हत्या कर दी गयी थी।वर्ष 1989 में गठित नौवीं लोकसभा राजनीतिक अस्थिरता का शिकार बनी और दो वर्ष के अंदर ही नये चुनाव कराने पड़े जिसके बाद 1991 मेें बनी दसवीं लोकसभा अपना कार्यकाल पूरा करने में सफल रही। इस दौरान पहली बार एक अल्पमत सरकार पांच वर्ष तक चली। इसके बाद केंद्र में फिर से राजनीतिक अस्थिरता का दौर शुरु हुआ और तीन वर्ष में तीन बार आम चुनाव कराये गये।

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ग्यारहवीं लोकसभा 1996 में बनी जो करीब दो वर्ष चली। नये चुनाव के बाद 1998 में गठित 12वीं लोकसभा तेरह माह ही चल पायी। वर्ष 1999 में तेरहवीं लोकसभा का गठन हुआ और श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार बनीं। इस लोकसभा का कार्यकाल अगस्त 2004 तक था लेकिन तत्कालीन सरकार ने छह माह पहले ही लोकसभा भंग कर नये चुनाव कराये जिसमें उसे हार का सामना करना पड़ा। वर्ष 2004 में गठित 14वीं , 2009 में बनी 15वीं और 2014 में गठित वर्तमान (16वीं) लोकसभा ने अपना निर्धारित कार्यकाल पूरा किया। यह दूसरा मौका है जब लोकसभा ने लगातार तीन बार अपना कार्यकाल पूरा किया। इससे पूर्व पहली, दूसरी और तीसरी लोकसभा ने लगातार तीन बार अपना कार्यकाल पूरा किया था।

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