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सहारनपुर जातीय हिंसा और भीम आर्मी के संघर्ष की दास्तान

नई दिल्ली,  राज्य सरकार ने सहारनपुर जातीय हिंसा के आरोपित भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर उर्फ रावण की समयपूर्व रिहाई का फैसला किया है। राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (रासुका) के तहत जेल में निरुद्ध रावण को छोड़े जाने के लिए डीएम सहारनपुर को निर्देश दिया गया है।  चंद्रशेखर उर्फ रावण के अलावा इसी मामले में आरोपित सोनू व शिवकुमार को भी समयपूर्व रिहा किया जायेगा। इससे पूर्व तीन आरोपित सोनू उर्फ सोनपाल, सुधीर व विलास उर्फ राजू को सात सितंबर को रिहा किया जा चुका है। लेकिन इन सोलह महीनों मे बहुत कुछ झेला है इन दलित युवाओं ने।

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 05 मई 2017 को सहारनपुर से करीब 25 किलोमीटर दूर शिमलाना में महाराणा प्रताप जयंती का आयोजन किया गया था. जिसकी शोभा यात्रा जानबूझकर विवादित रूट से निकाली गयी जिस पर दलितों ने पहले ही आपत्ति जताई थी. विवाद इतना बढ़ गया कि दोनों तरफ से पथराव होने लगे थे, जिसमें ठाकुर जाति के एक युवक की मौत हो गई थी.

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इसके बाद शिमलाना गांव में जुटे हज़ारों लोग करीब तीन किलोमीटर दूर शब्बीरपुर गांव आ गए. जहां भीड़ ने दलितों के घरों पर हमला कर उनके 25 घर जला दिए थे. इस हिंसा में 14 दलित गंभीर रूप से घायल हो गए थे.घटना से आक्रोशित दलित युवाओं के संगठन भीम आर्मी ने 09 मई, 2017 को सहारनपुर के गांधी पार्क में एक विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया था.

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इसमें क़रीब एक हज़ार प्रदर्शनकारी इकट्ठा हुए थे लेकिन प्रशासन की इजाज़त नहीं मिलने के कारण पुलिस ने इसे रोकने की कोशिश की. पुलिस के रोकने के कारण प्रदर्शनकारियों का आक्रोश बढ़ा और गई जगहों पर भीड़ और पुलिस में झड़पें हुईं. जिसमे एक पुलिस चौकी फूंक दी गई और कई वाहनों को क्षतिग्रस्त कर दिया गया था.

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इस विवाद के बाद 21 मई, 2017 को दिल्ली के जंतर-मंतर पर एक प्रदर्शन का आयोजन किया गया था, जिसमें चंद्रशेखर रावण सार्वजनिक रूप से सामने आए थे. तीन दिन बाद बसपा प्रमुख मायावती शब्बीरपुर के पीड़ित दलित परिवारों से मिलने गई थीं. यहां फिर मायावती की सभा से लौट रहे दलितों पर ठाकुर समुदाय के लोगों ने हमला कर दिया था, जिसमें 24 साल के एक दलित युवा की मौत हो गई थी. 08 जून, 2017 को उत्तर प्रदेश पुलिस ने भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद रावण को हिमाचल प्रदेश के डलहौजी से गिरफ़्तार कर लिया और उन पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून की धारा लगाई.

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एक वर्ष पूर्व, चंद्रशेखर उर्फ रावण द्वारा दाखिल  अर्जी पर सुनवाई करते हुए  इलाहाबाद हाईकोर्ट  ने उनकी सभी मामलों मे जमानत मंजूर की थी. कोर्ट ने जातीय हिंसा से जुड़े 4 मामलों में भीम आर्मी चीफ और डिप्टी चीफ सहित 4 लोगों को जमानत देते हुये चन्द्रशेखर और कमल की गिरफ्तारी को राजनीति से प्रेरित बताया था.

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लेकिन चंद्रशेखर को सभी मामलों में कोर्ट से जमानत मिलने के बाद रिहाई का आदेश आने से पहले ही जिला प्रशासन ने उनके खिलाफ रासुका के तहत कार्रवाई का नोटिस तामील कराया था. चंद्रशेखर सहित कुछ छह आरोपितों पर रासुका के तहत कार्रवाई की गई थी. जिसके कारण हाई कोर्ट से सभी मामलों में जमानत मिलने के बाद भी  चंद्रशेखर उर्फ रावण को जेल से रिहाई नही मिली.

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चंद्रशेखर  को  प्रशासन ने रासुका में निरुद्ध कर दिया और फिर योगी सरकार ने तीन-तीन माह करके चार बार रासुका की अवधि बढ़ा दी. बीजेपी सरकार की इस कार्रवाही पर भीम आर्मी समर्थकों सहित दलित -पिछड़ों मे जबर्दस्त आक्रोश दिखा. भीम आर्मी ने रावण की रिहाई को लेकर आंदोलन की चेतावनी दी और व्यापक आंदोलन शुरू किया .

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